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________________ 11 भगवान् महावीर का अनेकांतवाद (स्याद्वाद) : एक चिन्तन स्याद्वाद का अर्थ-विश्लेषण ‘स्याद्वाद' शब्द 'स्यात्' और 'वाद' इन दो शब्दों से निष्पन्न हुआ है, अतः स्याद्वाद को समझने के लिए इन दोनों शब्दों का अर्थ विश्लेषण आवश्यक है। स्यात् शब्द के अर्थ के संदर्भ में जितनी भ्रांति दार्शनिकों में रही है, संभवतः उतनी अन्य किसी शब्द के संबंध में नहीं । विद्वानों द्वारा हिन्दी भाषा में स्यात् का अर्थ 'शायद', 'संभवतः', 'कदाचित्' और अंग्रेजी भाषा में probable, may be, perhaps, some how आदि के रूप में किया गया है। इन्हीं अर्थों के आधार पर उसे संशयवाद, संभावनावाद या अनिश्चयवाद समझने की भूल की जाती रही है। यह सही है कि किन्हीं संदर्भों में स्यात् शब्द का अर्थ कदाचित्, शायद या संभव आदि भी होता है, किन्तु इस आधार पर स्याद्वाद को संशयवाद या अनिश्चयवाद मान लेना एक भ्रांति होगी। हमें यहां इस बात को स्पष्ट रूप से ध्यान में रखना होगा कि प्रथम तो एक ही शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं, दूसरे, अनेक बार शब्दों का प्रयोग उनके प्रचलित अर्थ में न होकर विशिष्ट अर्थ में होता है, जैसे-जैन परम्परा में 'धर्म' शब्द का प्रयोग धर्म-द्रव्य के रूप में होता है। जैन आचार्यों ने स्यात् शब्द का प्रयोग एक विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ में किया है। यदि स्याद्वाद के आलोचक विद्वानों ने स्याद्वाद संबंधी किसी भी मूल ग्रंथ को देखने की कोशिश की होती, तो उन्हें स्यात् शब्द का जैन परम्परा में क्या अर्थ है, यह स्पष्ट हो जाता। स्यात् III 116
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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