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________________ स्थापना करते हुए कहा गया है कि 'भय और वैर से मुक्त साधक जीवन के प्रति प्रेम रखने वाले सभी प्राणियों को सर्वत्र अपनी आत्मा के समान जानकर उनकी कभी भी हिंसा न करें। 21 यह मैकेन्जी की भय पर अधिष्ठित अहिंसा की धारणा का सचोट उत्तर है। जैनआगम आचारांगसूत्र में तो आत्मीयता की भावना के आधार पर ही अहिंसा सिद्धान्त की प्रस्तावना की गई है। जो लोक (अन्य जीव समूह) का अपलाप करता है, वह स्वयं अपनी आत्मा का भी अपलाप करता है।” इसी ग्रंथ में आगे पूर्ण आत्मीयता की भावना को परिपुष्ट करते हुए भगवान् महावीर कहते हैं- जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है, जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है और जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह भी तू ही है । भक्तपरिज्ञा से भी इसी कथन की पुष्टि होती है, उसमें लिखा है- किसी भी अन्य प्राणी की हत्या वस्तुतः अपनी ही हत्या है और अन्य जीवों पर दया अपनी ही दया है। " 23 24, भगवान् बुद्ध ने भी अहिंसा के आधार के रूप में इसी 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की भावना को ग्रहण किया था। सुत्तनिपात में वे कहते हैं कि जैसा मैं हूँ, वैसे ही ये सब प्राणी हैं और जैसे ये सब प्राणी हैं, वैसा ही मैं हूँ। इस प्रकार, अपने समान सब प्राणियों को समझकर न स्वयं किसी का वध करें और न दूसरों से कराएं। " गीता में भी अहिंसा की भावना के आधार के रूप में 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की उदात्त धारणा ही है। यदि हम गीता को अद्वैतवाद का समर्थक मानें, तो अहिंसा के आधार की दृष्टि से जैन दर्शन और अद्वैतवाद में यह अन्तर हो सकता है कि जहां जैन परम्परा में सभी आत्माओं की तात्त्विक समानता के आधार पर अहिंसा की प्रतिष्ठा की गई है, वहां अद्वैतवादी विचारणा में तात्त्विक अभेद के आधार पर अहिंसा की स्थापना की गई है। कोई भी सिद्धान्त हो, अहिंसा के उद्भव की दृष्टि से महत्व की बात यही है कि अन्य जीवों के साथ समानता या अभेद का वास्तविक संवेदन ही अहिंसा की भावना का मूल उद्गम है। " जब व्यक्ति में इस संवेदनशीलता का सच्चे रूप में उदय हो जाता है, तो हिंसा का विचार असम्भव हो जाता है। 26 जैनागमों में अहिंसा की व्यापकता जैन विचारणा में अहिंसा का क्षेत्र कितना व्यापक है, इसका बोध हमें प्रश्नव्याकरणसूत्र से हो सकता है, जिसमें अहिंसा के निम्न साठ पर्यायवाची नाम दिए गए हैं - 27 1. निर्वाण. 2. निवृत्ति, 3. समाधि, 4. शांति, 5. कीर्त्ति, 6. कांति, 7. प्रेम, 8., TIT 100
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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