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जगजयवंत जीवावला
(3) 'तेहवई श्रीमरुदेसी जीराउली-तीर्थनी उत्पत्ति हुई, आबू नी पासिं जीराउलीगामई धोसिरगोत्रि श्रे. श्री धांधल रहै छइं. तेहनी गौ सेहली-नदीनई कांठई वोरडीनी जाल मांही सीमाडे जाई छे- तिहां दध जरईं संध्या-समयरं ते गौ वणिक-घरै दूध न दीइं, तिवारइं ते धांधल गृहस्था जाणईं जे कोई सीमईं दोहीने दूध लीइ छै. तेहनी भ्रान्ति तेणे संघाते पुत्र ने मोकल्यो जिहां गौ चरई तिहां पृथ्वीनई ठिकांणि दूध छरी गई ते देखी पुत्र घरे आवी दूध-झरण वात पिता प्रति कही. तिणईं धांधलई आश्चर्य जाणी ते दूध-झरण-भूमि का खणी। एतलई घणा कालनी श्री पास-मूर्ति प्रगट हुई। एतलई अधिष्ठायकै स्वप्न दीधो-ते मुझने जीराउल्ली नगरईं थाप्यो. तिवारईं धांधलई प्रासाद नीपजावी महोत्सवे वि. सं. 1191 वर्षि श्री पार्श्व ने प्रासादे थाप्या। श्रीअजितदेवसूरिईं प्रतिष्ठ्या। घणा दिन ताईं श्री पार्श्वनाथनी भक्ति साचवतो श्रे. धांधल सद्गति नो भजनारो हुओ। ते श्री पार्श्व परमेश्वर जे जीरापल्ली नगरईं रह्या। सकल भक्ति लोकनी वांछापूरक मारिउपद्रव-निवारक सप्रभाव तीर्थ हुओ, यतः
'प्रबलेऽपि कलिकाले स्मृतमपि यन्नाम हरति दुरितानि। कामिताफतानिं कुरुते स जयति जीराउलीपार्श्वः।। इणिपरि श्री जीराउल्लीपार्श्व - उत्पत्ति।
पुनः वि. सं. 1191 वर्षि दील्लीनगरे विल्हाती पठाण आव्या, चहूआण नई काढ्या, म्लेच्चाण हुआ.'
1. वि. सं. 1806 वर्ष पर्यन्त के वर्णन वाली सुविदित तपागच्छ पट्टधरनाम की वीर-वंशावली, जो
जैन साहित्य संशोधक (खंड-1, अं. 3सरे के परिशिष्ठ) में सं. 1962 की ह. लि. नकल पर से श्रीयुत जिनविजयजी द्वारा संपादित हुई है। उसमें वि. सं. 1191 के साथ में अजितदेवसूरि के समय की यह घटना पृष्ठ 31 में बताई है।
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