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________________ जगजयवंत जीवावला सं 1524 में लिखित सोम सौभाग्य काव्य के मंगलश्लोक में जीरावला का उल्लेख है: श्री जारपल्लि नगरी गुरुमल्लिपल्लि, प्रोल्लासनोन्नत धनाधन सन्निभो यः। काले कलौ प्रविलसत्प्रबल प्रतापो, जागर्ति पार्श्वजिन राजमंह स्तुवे तम्।। इसी सदी में तपागच्छीय सोमजयसूरि के एक शिष्य ने जीरावला पार्श्वनाथ का एक छटावार स्तवन लिखा है। जीराउलि राउलि कय निवास, वासव संसेविय परव पास। पासप्पदु ! मह तुंपूरि आस, असेसणवंस निहय प्पयास॥1॥ खरतरगच्छ के शान्तिसमुद्र स्तोत्र में जीरावला पार्श्वनाथ का उल्लेख - सरीसे जालउरिजीरवल्ली करहेडई। पण सग नवफण मंडणउ पासुनमउ सविकाल॥ पन्द्रहवीं सदी में रत्नाकरगच्छ के आचार्य हेमचंद्रसूरि के शिष्य जिनतिलकसूरिजी ने तीर्थमाला स्तोत्र चैत्यपरिपाटि गा. 22 में लिखा है - 'जीरउलि भेटउपासनाह।' वि. सं. 1517 में भोज प्रबन्ध के रचयिता रत्नमंदिरगणि ने उपदेश तरंगिणी में तीर्थों का उल्लेख करते हुए जीरापल्ली का नाम लिया है। माण्डवगढ़ के मंत्री पेथड़कुमार ने पार्श्वनाथ विवाहलउ कवित्त में भगवान की प्रार्थना की है। वि. सं. 1554 में कोरंटगच्छ के कवि नन्नसूरि ने जीराउला गीत की रचना की है। देखिये परिशिष्ट। पाटन जैन भण्डार में सुरक्षित सं. 1556 में रचित विक्रमादित्य पंच दंडातपत्र चरित्र के प्रारंभ में स्तुति है - - - ( 40
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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