SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जगजयवंत जीवावला ददातु परमं पदंसपदि पार्श्वनाथो जिनः ।।2।। - जैन स्तोत्र संग्रह, प्राच्य विद्यामंदिर-बडोदरा) इसी सदी में कविराज श्री जयशेखरसूरि ने जीरापल्लीय पार्श्वनाथ की विनती गुजराती भाषा में लिखी: 'जगन्नाथुजीराउलउ हुँजुहारऊं, प्रभुपासुपूजि सवे काल सारऊ। जि के देवजीराउला नामि लागई, जई बीजा तणई ते न भागई। सवे दोहिल्या तीह तऊ दूरि नासई, वसई संपदपसिऊंपाय पासई। धणउ भाउजीराउलिई जई वानसु, जितंथाह रिऊ ताहरउ देव ! नामऊ। करीए गली वेगला पाप-पास, इसी माहरी पूरि तूं आस-पास। सं 1432 में कविराज मेरुनन्दन ने यमक अनुप्रास की छटा से युक्त ‘जीरापल्ली पार्श्वनाथ फागु' की रचना की थी (देखिए परिशिष्ट) वि. सं. 1478 में पृथ्वीचन्द्र चरित्र के रचयिता माणिक्यसुन्दरसूरि ने नेमीश्वर चरित्र के प्रारंभ में जीरावला पार्श्वनाथ की स्तुति की है : ‘नमउनिरंजन विमल सभाविहिं भाविहिं महिम निवासरे देव जीरापाल्लवल्लिय नवधन, विधन हरई प्रभु पासरे।' वि सं. 1485 में पीपलगच्छ के हीरानंदसूरि ने अपने विद्याविलास चरित्र - पवाडे (पाटन जैन भण्डार) के प्रारंभ में वंदना की है : 'पहिलउंपगमिअ-पढ़मजिणेसर सित्तुञ्जय अवतार' हथिणउरि श्री शांति जिणेसर उजलि (जति) नेमिकुमार जीराउलिपुरी पास जिणेसर साचउसिं वर्धमान कासमीर पुरी सरसती सामिणि ! दिउ मअ नितु वरदान।' 38
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy