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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः गोयमपए ठवित्ता-णिक्कं विहिया समच्चणा भावा । छत्तीससहसमाण-जायं दविणं भगवाए ॥९॥ तेण दविणजाएण-आगमगंथा लिहाविया मोया॥ भरुअच्छाइसु विहिणा-कारविया सत्त नाणनिही ॥११॥ जइणागमप्पईओ-सगसग विलिहाविया सुवण्णेहि सोवण्णिएहि भव्वा-कुमारपालेण भूवइणा ।.९२। सड्ढतिकोडिसिलोग-प्पमाणगुरुहेमचंदगंथाणं ॥ पत्तेयमिक्कवीसा-लिहाविया तेण चंगपई ॥ ९३॥ सगसयलेहगपयरो-निओजिओ लेहपन्थुयविहाणे॥ इगवीसइनाणनिही-कारविया नाणभत्तीए ॥ ९४॥ तिणि निही कारविया-अडदसकोडीपमाणदविणवया॥ पहुपवयणपणएण-मंतीसरवत्थुपालेणं ॥ ९५ ॥ नाणलिहावणकज्जे-आभूवरसावगेण कोडीओ ॥ तिणि व्वइआ पुण्णा-पसत्यसोवण्णवण्णेहिं ॥९६॥ पइसुत्तिविकपई-लिहाविया गणहरुनिनेहेणं ।। अण्णग्गथाऽवि तहा-एएसिं सच्चनाणरई ॥ ९७॥ सोवण्णियसंगामो-करीअ बहुमाणगब्भसुयभत्तिं ॥ एवं भव्वजिए हिं-सुयभत्ती सव्वया सज्झा ॥९८॥ अट्ठावीसइभेया-मइनाणस्स स्सुयं च चउदसहा ॥ छब्भेयावहिनाणं-मणपज्जवनाणभेयदुगं ॥ ९९ ॥