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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
अहियं केवलनाणा - सुयनाणं गोयरीइ दिता ॥ साविक्खवयणमेयं-- गुरुमइपरतंततत्तत्थो ॥ ८० ॥ इक्कंपि य सुयवयणं, सिग्घं नासेइ सयलदुरियाई ॥ सामाइयपयभावा, अणंतभव्वा गया मुत्तिं ॥ ८१ ॥ आगमसद्धाइ पए -- पए पवरमंगला लिकल्लाणं ॥ हवइ सुयवभासेणं-- अदिपरमत्थ विष्णाणं ॥ ८२ ॥ विच्छिण्णप्पायमिणं, अहुणा दीसह विहीणकालाओ ॥ नागज्जुणाइसरी -- करीअ तं पुत्थयारुहियं ॥ ८३ ॥ एयं वियारिणं सा पूति परिलिहावेंते ॥ न लहंति मूयभावं - दुग्गइपीडा पणासंते ॥ ८४ ॥ सुययाइ जडत्तं - मइहीणत्तं ण सयलसुयबोहो || तत्तपयासणसत्ती - केवल सिवसंपया हुज्जा ॥ ८५ ॥ वत्थाइयाणेहिं - सम्माणं पाढगाण हरिसाओ || पकुर्णता भव्वणरा - केवलनाणं पसाहेज्जा ॥ ८६ ॥ नायत्तधणेहिंतो - बहुमाणा कुसललेहगेसुंतो ॥ सिरिताडप्पमुहेसुं - अंगोवं गाइमुत्ताई ॥ ८७ ॥ सुद्धा लिहावित्ता - वक्खाणेउं गुणीण समणाणं || दिज्जाई वरविहिणा - सोअव्वाई पत्ता ॥ ८८ ॥ णिसुया दुवालसंगी-सूरीसरधम्मघोसपासम्म | पेडमंती सेणं - विवाहपण्णत्तिणिसवणे ॥ ८९ ॥
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