SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः ॥ श्री कदंबगिरि चैत्यवंदनम् ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ वंछियदाणसमत्य-परमत्यनियाणकुसलसाहणयं ॥ विजयइ कयंबतित्थं-विमलब्भुयमहिमसंकलियं ॥१॥ सिरिसंपइतित्थयरो-इह गयचउवीसिगाइ तस्स गणी ॥ इगकोडी मुणिसहिओ-पत्तो मुर्ति कयंबक्खो ॥२॥ एएण कारणेणं-एस कयंबत्ति णामपरिविइओ॥ कल्लाणपसतियरो-भवसायरजाणवत्तनिहो ॥ ३ ॥ कम्माण बंधमुक्खा-हॉति सया भावणाणुसारेणं ॥ कम्मुम्मूलणदक्खो-सुहभावो तित्थभूमीए ॥ ४ ॥ एवं नाऊण सया-कुणंतु भव्या ! कयंवतित्थस्स ॥ भत्तिं परमुल्लासा-सच्चाणंदो हवइ जम्हा ॥ ५॥ ॥ श्री हस्तिगिरि चैत्यवंदनम् ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ अणसणसाणहजोगा-जत्थ गया भरहचक्कवट्टिस्स ॥ सुररिद्धिं संपत्ता-बुच्चइ तेणेस हत्थिगिरी ॥१॥ सिद्धायलिकदेसो-परमत्था भिन्नया न दुण्डंपि ॥ सेत्तुजी सुक्खदया-वहए अत्थिक्कपासम्मि ॥ २ ॥ एयं तित्थं समय-भव्वाणं कम्मणिज्जराकरणं ॥ सम्भावुल्लासयरं-चियदुरियघणाणिलं विसहं ॥ ३॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy