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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
सरनिहिनंदिंदुमिए - सिरिगोयम केवलत्ति सुहदियहे || सिरिजिणसासणरसिए - जइण उरीरायणय रम्मि ॥ ९४ ॥ विहचिंतामणिथुत्तं - गुरुवर सिरिनेमिसृरिसीसेणं ॥ पउमेणायरिएणं- विहियं पभणंतु भव्वयणा ! ॥ ९५ ॥
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॥ श्रीप्राकृतचैत्यवंदन संदोहः ॥
॥ श्री सिद्धचक्र चैत्यवंदनम् ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥
तित्थयरे गयमोहे - सिद्धे लोयग्गठाण संपत्ते ॥ आयरिए गणना - मुणिवायगवायगे वंदे ॥ १ ॥ नियगुण लीणे समणे - सुहाय भावस्सख्वसम्मत्तं ॥ तत्तत्थबोहरूवं-नाणगुणं पणविहं वंदे ॥ २ ॥ मुद्धपवित्तिसरूवं - चरणं पोयं महाभवसमुद्दे || तवपयमिच्छियदाणे - कप्पयरुं भावओं वंदे || ३ ॥ चित्तालंवणमेयं - उकिटं सिद्धचक्क संसेवा || कय सव्वासिवविलया - पवित्तमाहप्पसंकलिया ॥ ४ ॥ सिरिसिरिवालो राया - नवपयसंजायसिद्धचक्काओ ॥ जाओ विणकुट्टो - संपत्तो तायगयलच्छि ॥ ५ ॥ होइ सया कल्लाणं-सिग्घं तह विसमकज्जसंसिद्धी ॥ आणंदबुद्धिरिद्धि - झाणाओ सिद्धचक्कस || ६ ॥