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________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २४७ बहुमाणभत्तिजोगा-सेडिसुदंसणमहं च तं वंदे॥ दुहयहिमाणचाया-केवलपत्तं च बाहुबलिं ॥ ६४ ॥ अंगारा जरस सिरे-ससुरेणं सोमिलेण दुटेणं ॥ भरिया तत्ता सम्मा-जेणं सोढं तयं दुक्खं ॥६५॥ साहियकेवलनाणं-पज्जते तं विलद्धपरमपयं ॥ गयसुकुमालमुणसं-वंदे कण्हाणुयं भावा॥६६॥ सोवण्णियपरिवेढिय-वाहरपरिवेयणं पसम्माओ॥ सहिअ विहिअभवछेयं-मेअजमुणीसरं वंदे ॥ ६७॥ वग्धीभक्खणदुक्ख-सहिअ पगयकेवलं सुकोसलयं ॥ कित्तिहरं समभावं-वंदे बहुमाणभत्तीए ॥ ६८॥ गयभवनियरमणीए-दुसियालीइ भक्खणं सहिअ॥ नलिणीगुम्मविमाणे-जायं भदंगयं वंदे ॥ ६९ ॥ पीलणपीडं सम्मा-सहिअ पसाहिअविबोहमुत्तिपए ॥ खंधगपणसयसीसे-वंदे बहुमाणभत्तीए ।। ७० ॥ करठियनारीसीसो-तेण चिलाईसुओ पयाणतिगं ॥ सोच्चा सम्म पत्तो-वरटिइं तं सया वंदे ॥ ७१ ॥ पइदिणहच्चायारी-अज्जुणमाली पसंतिय खमाए ॥ सहिअ परीसहदुक्खं-सिद्धो वंदामि तं भावा ॥ ७२ ॥ उत्तममुणिवइसमणो-जलणत्ति सहिअ सम्मभावेणं ॥ सग्गसिरिं संपत्तो-वंदे तं भत्तिबहुमाणा ॥७३॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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