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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
वयनिहिणदिंदुसमे-सिद्धियसोहग्गपंचमीदियहे ॥ सिरिजिणसासणरसिए-जइणउरीरायनयरम्मि ॥ १०९॥ तवगणगयणदिवायर-गुरुवरसिरिनेमिसूरिसीसेणं ॥ पउमेणायरिएणं-लच्छीप्पहसीसपढणढं ॥ ११०॥ अभिणंदणथवसयगं-रइयं वरमुत्तदेसणाकलियं ।। निसुणंतपदंताणं-मंगलमाला गिहे नियमा ॥ १११ ॥
॥श्री चिंतामणि बृहत्स्तोत्रम् ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥ चिंतामणिमाहप्पं-वंदिय सिरिसिद्धचक्कणेमिपयं ।। चिंतामणिगुरुथुत्त-रएमि सिरिसंघकल्लाणं ॥ १॥ विमलेसरचक्केसरी-सिरिसिरिवालाइभवपरिपुज्जं ॥ सिरिसिद्धचक्कमिटुं-वंदामि सया प्पमोएणं ॥२॥ लुणइ स दुक्कम्मलयं-झाणकुढारेण सिद्धचक्कस्स ॥ जो निणियाण भावो--सत्तियविहिरायसंजुत्तो ॥ ३ ॥ दिव्वुण्णइ संपत्ति--परमब्भुयनिच्छियत्यमाहप्पं ॥ वंदामि धम्मसारं--नवपयमयसिद्धचक्कमहं ॥४॥ चिंतामणिकप्पलया-कप्पतरुप्पमुहवत्थुसत्येहि ॥ अहियप्पहावकलिओ--सिद्धगिरीसो सया जयउ ॥५॥