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जा बुद्धी सावज्जे
सा जइ धम्मे तया सुहं विउलं ॥ इय० ॥६९॥
परकंखा परमदुहं
परमसुहं निरहिलासभावत्तं ॥ इय० ॥ ७० ॥
श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
नाणी रमए नाणे
रमइ दुहत्थीजणो य अण्णाणे | इय० ॥ ७१ ॥ चउदसभेया जीवा
इयरे बुत्ता तव पुज्जेहिं ॥ इय० ॥ ७२ ॥ पुण्णासवाण भैया
दुगुणिगवीसइपमाण संखिज्जा ॥ इय० ॥ ७३ ॥
बासी भेयपावं
सत्तावण्णप्पयार संवरणं ॥ इय० ॥ ७४ ॥
बारसहा णिज्जरणं
भेयचक्कं तहेव बंधस्स || इय० ॥ ७५ ॥
.मोक्खो नवप्पयारो
नवता रुपयाईणि ॥ इय० ॥ ७६ ॥
रसवण्णभेयपणगं
गंधदुर्ग हत्थियफासो य ॥ इय० ॥ ७७ ॥ मइनाणं पणभेयं
चोइसवीसप्पयारसुयनाणं ॥ इय० ॥ ७८ ॥