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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
गमणखणेगइविसओ
जंघाचारणमुणीण सिग्घयरो ॥ इय० ॥ ४९ ॥ आगमणे सिग्घयरो
विज्झाचारणमुणीण गइविसओ ॥इय०॥५०॥ विमला होज्जा विज्झा__अब्भासा तारिसा न गइकाले ॥ इय० ॥५१॥ समकारणा विलंबो
जंघाचारणमुणीण आगमणे ॥ इय० ॥ ५२ ॥ कम्मुदए भेयदुगं
रसप्पएसेहि होइ रसभयणा ॥ इय० ॥५३॥ बंधो मुक्खो भावा,
सुहाइहेउप्पसाहणा जाया । इय०॥५४॥ विविहविवक्खाजोगा
पणदसभेया हवंति सिद्धाणं ।इय०॥५५॥ आवरणिज्जगुणेहि
भेया कम्माण अट्ठ पण्णत्ता ॥ इय०॥५६॥ सोचा जिणवयणाई
पुग्गलविरई बुहेहि कायव्वा ॥इय०॥५७॥ जयणाधम्मविसिट्ठा
किरिया सुहदाइणी सुए भणिया ।इय०॥५८॥