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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः तिरिगइगामी णेओ
उरुजुयला णिग्गओ य जस्सप्पा ॥इय०॥२९॥ हियया नरगइगामी
सुरगइगामी विणिग्गओ सीसा ॥इय०॥३०॥ सव्वंगेहिं सिद्धो
अंतिमसमए विणिग्गओ जीवो ॥इय०॥३१॥ वीसासो न विहेओ
__कयावि भव्या ! पमायलेसस्स ॥इय०॥३२॥ भोगा रोगपयाई
सुहलेसो तत्तओ न ते हेया ॥ इय० ॥ ३३॥ आणंदो न विहेओ
मुहसमए होइ सुहखओ जम्हा ॥ इय० ॥३४॥ दुहसमए न विसाओ
जं दुक्कयकयवरोहपविणासो ॥ इय० ॥ ३५॥ महजोगेहिं धम्मा
राहणसंगेग दुक्खविद्धंसो ॥ इय० ॥ ३६॥ अहिओ धणकोडीए
समओ इक्कोऽवि मणुयभावस्स ॥ इय० ॥३७॥ मुत्तिदयं चारित्त,
__णच्चा सेविज्ज संजमं भावा ॥ इय० ॥ ३८॥