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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
सियपक्खियाण नूणो
संसारो कण्हपक्खियाणहिओ ॥ इय० ॥ १९ ॥
तइयनपुंसगवेओ
निरयाणं वासवाण वेयदुगं ॥ ३० ॥ २० ॥
नरतिरियाणं वेया
तिष्णि पणिदियविसिसणाणं ॥ इय० ॥ २१ ॥
युगलियनरतिरिजीवा
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देवा नियमेण होज्ज मरिकणं ॥ इय० ॥२२॥
मणुयत्तप्पाहणं
चरणेणं निम्मलेण नणेणं ॥ इय० ॥२३॥ लहुओ वरतिरिलोओ
उड्डयलोओ तओ य संखगुणो ॥ इय०॥२४॥
अह लोओ य विसेसा
अहिओऽहियसत्तरज्जुमाणाओ | | ० ||२५||
अट्ठारस सयजोयण
माणो तिरिलोयओ मुणेयव्वो || इय० ॥ २६ ॥ हीणसगरज्जुमाणो
जिणेहि कहिओ य उडलोयत्ति ॥ इय०॥२७॥ सो गज्छ निरयथळे,
पाएहि विणिग्गओ य जस्सप्पा ||३०||२८||