________________
प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
૨૨૬
सरणिहिणदिदुसमे, उत्तमसोहग्गपंचमीदियहे ॥ सिरिजिणसासणरसिए, जइणउरी रायणयरम्मि ।१०३। सिरि संभवथवसयगं, गुरुवरसिरिणेमिसरिसीसेणं ॥ पउमेणायरिएणं, विहियं पभणंतु भव्वयणा !॥१०४॥
॥ श्री अभिनंदनस्वामिस्तोत्रम् ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥ वंदिय वीरनिणिदं-पुज्जपयं नेमिसूरिमिट्ठदयं ॥ अभिणंदणपहुथुत्तं-पणेमि पुण्णट्ठसंकलियं ॥१॥ वइसाहचउत्थीए, मुक्काए जस्स चवणकल्लाणं ॥ तिण्णाणणियविणं-तं वंदामो चउत्यजिणं ॥२॥ माहे सियबिइयाए, जायं सियवारसीइ गहियवयं ॥ चउनाणमोणसहियं-वंदे भावा चउत्यजिणं ॥३॥ साहियकेवलनाणं-पोसे सियचोदसीपवरदियहे ॥ दसिय पयत्थतत्तं-वंदे भावा चउत्थपहुं ॥ ४ ॥ देवाणं पणभेया-नरभावदवियसुधम्मजिणएहिं ॥ इय तत्तगोवएसं-चंदे भावा चउत्थपहुं ॥५॥ छल्लेसाओ भणिया
छक्काया सत्तभेयभिन्नभयं ।। इय०॥६॥ आया तहट्ठभेओ
नवभेयनियाण सीलगुत्तीओ ॥इय०॥७॥