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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
चउआगइगइवंता
नासेज्जा संतगुणे
पंचिदियभाविया य तिरिमणुया || इय० ॥ ६३ ॥
चकारण सेवणेण दीवेज्जा ॥ इय० ॥ ६४ ॥
सव्वेसिं देहीणं
देहुप्पत्ती य कारणचउक्का ॥ इय० ॥ ६५॥
चत्तारि धम्मदारा
चत्तारि पुण्णमल्ला
चत्तारि निबंधणाइआऊणं ॥ इय० ॥ ६६ ॥
१५
गेयालंकारनट्टवज्जाइ ॥ इय० ॥ ६७ ॥
अहिणयकव्वं चउहा
गब्भा उदगस्स होज्ज नारीओ ॥ इय० ॥ ६८ ॥
तयचथे सग्गे -
देवविमाणा य होज्ज चडवण्णा ॥ इय० ॥ ६९ ॥ अट्टमसत्तमसग्गे
मूलंग करचक्कपरिमाणं ॥ इय० ॥ ७० ॥
चत्तारि चूलवत्थू
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पढमे पुव्वे तव आवत्ता ॥ इय० ॥ ७१ ॥
चत्तारि समुग्धाया
नेरइयाईण होज्ज जीवाणं ॥ इय० ॥ ७२ ॥
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