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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
फग्गुणसियट्टीए, वरसेणा कुक्खिसुत्तिमोत्तियह ॥ भुवणविहियवरसंति, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥३॥ जियरि कुलंबरचंदं, मग्गसिरे सुक्कचोदसीदियहे ।। जायं सावत्थीए, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥ ४ ॥ चउसयधणुभियदेहं, मग्गसिरे सुक्षुणिमादिवसे। दस सय मुहपरिवार, छट्ठत वग्ग हियचारित्तं ॥५॥ छउमत्थत्तं चोदस-वरिसाइंजस्सतं मुहविहारं ॥ चउनाणमोणकलियं-वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥ ६॥ भवतइघाइचउक्कं-कत्तियसियपंचमीइ छटेणं ॥ नासित्ता जो पत्तो-पंचमनाणं सरामो तं ॥७॥ चत्तारि सुया भासा, पण्णत्ता धम्मकोरवा चउहा।। इय तत्तगोवएस, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥ ८॥ चत्तारि अंतकिरिया,
__पुरिसकसाया तहेव चत्तारि ॥इय०॥९॥ झाणालंबणलक्षण__णुप्पेहणभेयभावणा चउहा ॥इय०॥१०॥ निरयाउहेउसावग
सुयसण्णा भासिया सुए चउहा ॥इय०॥११॥ विगहालियहासाणं. हेऊ चत्तारि पवयणे गइया ॥इय०॥१२॥