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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
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परमुक्किट्ठा मुक्का, वट्टइ जेसिं सजोगिगुणठाणे ॥ सिरिपुंडरीयगणिणो, कुणंतु ते जइणसंघहियं ॥१०॥ भव्वा कामह मुत्ति, नियगुणरइसिद्धिनाहपरिभुत्तं ॥ जइ ता कयंबतित्थ-ठियबिंबच्चं कुणह भावा ॥११॥ कम्मक्खयाइजोगे-खित्तं परमं निबंधणं तित्थं ॥ तारिसगुणगणसहियं, वंदे सिरितित्थहत्थिगिरिं ॥१२॥ लोयत्तयट्ठपडिमा-वंदे विणएण वीयरागाणं ॥ वंदणपूयणसीला-बंधंति वरिणजिणनामं ॥ १३ ॥ तवगणगयणदिवायर-गुरुवर सिरिनेमिसूरिसीसेणं ॥ कल्लाणयरं रइयं-लहुणा पोम्मेण थुत्तमिणं ॥ १४॥
॥श्री गौतमस्वामि स्तोत्रम् ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥ वंदित्ता सिरिपासं, मंगलदयणेमिसरिगुरुमंतं ॥ विरएमि तित्थमई, गणिवरसिरिगोयमत्थवणं ॥१॥ पुत्तग्गं पुहवीए, वसुभूइप्पवरवंसखदिणमणिं ॥ . गोयमगुत्तपहाणं, वंदे सिरिगोयमं भावा ॥२॥ सुरनरवइ थुयचरणं, सुवण्णवण्णाडवीसलद्धिजुयं ॥ चउनाणि ममियपाणिं, वंदे सिरिगोयमं सययं ॥३॥