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________________ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः समकासी सिरिगुरुणो- जिणधम्मप्पहावणाइलाहङ्कं ॥ विहरता तं पत्ता - अंगीकाऊण विष्णनि ॥ ८६ ॥ उज्जावणप्प संगे- गुरुणा संघग्गहेण विष्णस्स ॥ वागणंदणगणिणो-आयरियपयं विइण्णं च ॥८७॥ मायरतित्थरहाणं- महप्पट्टा कया तओ गुरुणा ॥ सिरि थंभतित्थसंघो - तत्थ पइडाइविष्णत्तिं ॥८८॥ विणया कुणइ गुरूणं - णच्चा संघस्स विउलकल्लाणं ॥ पत्ता थंभणतित्थं अंगीकाऊण विष्णत्तिं ॥ ८९ ॥ सुहतिहिसोहणजोगे - थंभणपासाइ सव्वपडिमाणं ॥ गुरुणा कया पट्ठा - महुस्सवाइप्पबंधेणं ॥ ९० ॥ संघग्गहेण विहिया - चाउम्मासी तहिं पवरगुरुणा ॥ अंते गुरूवएसा–सत्तुंजय तित्थ जहं ॥ ९१ ॥ चलिओ संघो तेणं - सह गुरुणो सिद्धवित्तमणुपत्ता ॥ विहियविमल गिरिजत्तो- समागया सिरि कयंबगिरिं ॥ ९२ ॥ चिंती मज्झ गुरुणो- बहुमाणं चिय विसुद्ध हियएणं ॥ गहियाण य भूमीण - वीसइवरिसा वइक्कंता ।। ९३ ॥ अहुणावि य तयवत्था - बारसगाउप्पयाहिणाए य ॥ इह विवहा बहुसंघा - जत्तट्ठी भूरिदेसत्था ॥ ९४ ॥ पइवरिसं भत्तिजुया - सहस्सहुतो सहस्ससंखिज्जा ॥ हरिसाऽऽगच्छंति सया - कब गिरिरायछायाए ॥९५॥ २००
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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