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________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः 9 दाऊण लाहमणहं, तत्तो सिरिरायणयरमज्झमि ॥ चाम्मासीजुयल, विहियं भव्वोवयारटुं ॥ ७६ ॥ पण्णासपयं दिष्णं गुरुणा सिरिणंदणस्स सिद्धिस्स || चाणसमाभिहणयरे, सूरी कमसो समणुपत्ता ॥ ७७ ॥ उवएसा सूरीणं, चाणसमागामबज्झदेसम्म ॥ कारविया संघेणं, सिरिविज्झावाडिया रम्मा ॥७८॥ पासाओ रमणिज्जो, निम्मविओ तत्थ पुज्जपडिमाणं ॥ गुरुणा कया पट्टा, वस्स्सवाइप्पबंधेणं ॥ ७९ ॥ उज्जावणष्पसंगे, नियनयरागमण हे विष्णत्तिं ॥ काउं पत्तनसंघो, समागओ सगुणकलिओ ॥८०॥ सोच्चा तं विष्णत्तिं वियारिऊणं पहावणालाहं ॥ विहरता संपत्ता, पत्तननयरम्मि जगगुरुणो ॥ ८१ ॥ पण्णासपयं दिण्णं, विणेयपउमस्स सूरिणा विहिणा | पियसमए दिण्णा, नियप्पसीसस्स गुरुदिक्खा ॥८२॥ चाउम्मासी पुज्जा - गुरुणो संघग्गहेण तत्थ ठिया || अंते गुरुवएसा - संघो गिरिनार जत्त ॥ ८३ ॥ चलिओ संघेण समं - गुरुणो सीसप्पसीसपरिवरिया | सिरिधांगद्धानयरं - जा विहरंता समणुपत्ता ॥ ८४ ॥ सिरिरायनयरसंघो - पुव्वितत्थागओ विवेगजुओ || उज्जावणाइकज्जे- नियणयरागमणविष्णत्तिं ॥ ८५ ॥ • १९९
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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