________________
प्राकृत स्तोत्र प्रकाशः
अह कारणाइ चिच्चा, णिम्मलसुहकारणोहसंसेवा ॥ कायव्वा इय सिक्खा, मिलइ विवागोवसवणेणं ॥५०॥ उपायपदमपुव्वे, पयकोडी दव्वनिभावतिगं || उप्पत्तिव्त्रयधुवं, पवी पुरिसेहिं पण्णत्तं ॥ ५१ ॥ अग्गायणीयपुबे, सुछण्णव लक्खमाणयपयाई ॥ समभेयवीयसंखा, जुगप्पहाणेहि पण्णत्ता ॥ ५२ ॥ वीरियपवायव्वे, वीरियजयवीरियाण सन्भावा ॥ सित्तरिलक्खपयाई, विसालभावत्थजुत्ताई ॥ ५३ ॥ सगभंगसियावाया, वरत्थिनत्थिष्पवायव्वम्मि || पयलक्खाई सट्टी, विहितत्तत्थकलियाइ ॥ ५४ ॥ णाणपत्रायपुब्वे, पण्णत्तो पंचाणवित्थारो || एगूणा पयकोडी, विसालणाणाविवक्खडा ॥ ५५ ॥ सच्चप्पवाय पुव्वे, छहियाकोडी पयाण णायव्वा ॥ वायगवच्चसरूवं, कहिया सच्चाइभासाओ ॥ ५६ ॥
3
१७५
पयकोडी छब्बीसा, अप्पपवाए य सत्तमे कहियं ॥ अप्पाणो चित्ते - यरवावगकारगतं च ॥ ५७ ॥ कम्मपवायपयाई, एगा कोडी असी लक्खाई || कम्मसरूवं भणियं, बंधोदयदीरणासत्ता ॥ ५८ ॥ पच्चक्खाणपवाए, चउरासीई पयाण लक्खाई || पच्चक्खाणसरूवं भणियं दव्बाइ भेगं ।। ५९ ।।
,