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________________ १७४ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः जालिमयालुवयाली, अभयकुमारो य धारिणीतणया॥ सग दीहसेणपमुहा, तेरसपुत्ता पसमपत्ता ॥ ४० ॥ काकंदीवत्थव्वो, धष्णो बत्तीसगेहिणीचाई ॥ वरनरकत्ताइणरा, सोचा सिरिवीरवयणाई ॥४१॥ आराहियवरचरणा, पत्ताणुत्तरविमाणसंपत्ती ॥ तेसिं वरणवमंगे, कहियं वरजीवणं सुहयं ॥ ४२ ॥ पण्हावागरणंगे, विज्झामंताइगब्भपण्हसयं ॥ आसवसंवरभावा, पूयाणामं तह दयाए ॥ ४३ ॥ एगसुयरकंधो दस-ज्झयणाई बोहदाणनिउणाई॥ जलधारासरिसाई, चियकम्ममलावणयणेसु ॥ ४४॥ वीसज्झयणाइ तहा, सुयखंधदुर्ग विवागणामसुए । दुक्कयसुकयफलाई, कहापबंधेहि वुत्ताइ ॥४५॥ बत्तीससहस्साहिय-चोरासीलक्खजुत्तपयकोडी॥ वेरग्गमयबिवागे, णायव्वं पुव्वसमयंमि ॥४६॥ के के जीवा दुहिणो, सेवित्ता पावकारणाइ गया। निरयाइगई दीहं, एवं पढमे सुयक्वंधे ॥ ४७ ॥ संसेवित्ता धम्मे, जिणपण्णत्ते य दाणसीलाई ॥ सग्गइसुक्खं पत्ता, के के बिइए सुयखंधे ॥ ४८॥ दाणाइसाहगाण; सुबाहुपमुहाण भव्वसट्टाणं ॥ चरियं कहियं सुहयं, सुहसिक्खादायगं विउलं ॥४९॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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