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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
अट्ठष्पवयणमाया - राहणणिउणे पसण्णयरहिअया ॥ णिम्मलवेरग्गगया, ते वंदे वायगे णिच्चं ॥ १० ॥ आयारे आयारो, समणाणं सुत्ति भो गणहरेहिं ॥ अट्ठारसपयसहसं, दुसुयरकंधणियं पढमं ॥ ११ ॥ ससमयपरसमयाणं, लोयालोय प्पजीवपमुहाणं ॥ सूयगडंगे भणियं, वाइच व कस्सरूवं च ॥ १२ ॥ विविहोवसग्गभावा, अद्दकुमाराइविविहसन्भावा ॥ तत्थेव वित्रेणं, पयासिया पुज्जपुरिसेहिं ॥ १३ ॥ इक्कत्था दसंता, अत्था परिगुंफिया विसेसाओ ॥ तइयंगे ठाणगे, वृत्ता विविहाणुओगाणं ॥ १४ ॥ समिसावगाहियभावा, चभंगी सावगाण तह दुविहा ॥ समिइव्वयपमुहाणं, परूवणं पंचमज्झयणे ॥ १५ ॥ आराहिऊण विहिणा, सिद्धत्थसुयस्स सासणं हरिसा ॥ तित्थयरत्तं भव्वा णव पावित्संति संतिगिहं ॥ १६ ॥ सेणियसंखोदाई, सुपासपोट्टिलदढायुवरसयगा ॥ तह रेवई य मुलसा - णवमज्झयणे मुणेयव्वा ॥ १७॥ तह पउमणाभचरियं, सेणियणिवजीवणं महारसियं ॥ अइसयत णिहाणं, दीसइ अहुणा वि ठाणंगे ॥ १८ ॥ दव्वाइविमाणाणं, पुरिससमुद्दाण सेलसलिलाणं ॥ भावा अज्झयणाई, दस तइयंगे सुयक्खंधो ॥ १९ ॥