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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
श्री गिरिनारतीर्थपति
॥ श्री नेमिनाथ - स्तोत्रम् ॥
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|| आर्यावृत्तम् ॥ सिरि सूरिमंतसरणं - किच्चा गुरुणेमिसूरिपयणमणं ॥ रेवयसामित्थवणं - करेमि कल्लाणबीयघणं ॥ १ ॥ विज्झापाहुडमज्झे - वृत्तंतं जस्स रेवयणगस्स ॥ तयहीसरणेमिप हुं - समुद्दतणयं सया वंदे || २ || अवरानिय सुक्खं जो - भोच्चा चविओ सिवाइ कुच्छिम्मि ॥ कत्तियमासे किण्हे - पक्खे वरवारसीदिय || ३॥ चित्ताचंदे जाओ, जो सावणसुक्कपंचमीदियt || कण्णा रासी तइया - तं मिजिणेसरं वंदे ॥ ४ ॥ सावणसियछदिणे-छद्वेण तवेण सुद्धभावेणं ॥ छत्तसिलाइ समीवे-पवण्णदिक्खं पहुं वंदे ॥ ५॥ सहसंबवणे जेणं - अस्सिणपज्जंतवासरे सिद्धे || केवलनाणं लद्धं-तं णेमिपहुं सया वंदे ॥ ६ ॥ ( शार्द लविक्रीडितवृत्तम् )
रुक्खज्झाणसुया तत्र पुरिसा चत्तारि सिद्धा सुया । भासाजायसुधम्मवत्थदुलहा चत्तारि ते कोरवा ॥ सण्णाको निबंधणाइ पडिमा चत्तारि णेया तहा । एवं णिम्मलदेसणं पथुणिमो संखंकणेमि पहुं ॥ ७ ॥