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प्राकृत स्तोत्रप्रकाशः
सो पुंडरीयसामी संपत्तो व्बुि सपरिवारो ।। चित्तस्स पुणिमाए, ता णामं पुंडरीयति ॥ १४ ॥ एम्म वासरे जो, पोसहदाणच्चणं तवजवाई | पकुणइ सोऽदिहिं, पणकोडिगुणं फलं लहए || १५॥ मज्झिमफलववहारा, पूयाइविहायगो य भवपणगे | णियमा पावइ मुत्ति, अंतमुहुत्ते जहणं ॥ १६ ॥
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भाव जोगा, झागाणलदड्ढसव्त्रकम्ममला ॥ haraयासा, सिद्धसिलामंडणा होज्जा ॥ १७॥ पूया या पंचपयारा, वरवहि वहिया पयच्छए नाणं ॥ fear सकिंदाई, सोच्चा वरपुणिमा महिमं ॥ १८ ॥ सिरिपुंडरीयतित्थे, जाया वरभत्तिभाविया केई || सुपुणिमातवंमि, पण्णरसदप्पमाण मि ॥ १९ ॥ जीए चंदसिरीए, पइविरहो कारिओ वियारा ता ॥ पत्तं विसकण्णत्तं, लग्गावसरे मओ भत्ता || २० | तीए सिसुविहवाए, एयतवाराहणाणुभावेणं || पत्ता सोहमरिद्धी, महाविदेहे सुकच्छंमि ॥ २१ ॥ पावस परमपयं, अयरामररोगसोगपरिहीणं ॥ एवं अगमव्वा, सिद्धा पुव्वंमि कालंमि ॥ २२ ॥ सिरिपुंडरीय सामी, पत्तो परमं पर्य मुया जत्थ || दसरह तो भरहो, कण्हंगयसंबपज्जुण्णा ॥ २३ ॥