________________
वर्ण्यम्
आचार्य भिक्षु नवीन दीक्षा ग्रहण कर अपने साथी मुनियों के साथ साधना करते हुए विहरण कर रहे थे । धीरे-धीरे ख्याति बढी। आचार्य रघुनाथजी ने तब अपना विरोध और तीव्र कर डाला और अपने भक्तों से कहा-'सबको सजग रहना है और यह प्रयत्न करना है कि भोखन के पैर कहीं भी जम न पाए । इसके उपक्रम का समूल उच्छेद ही श्रेयस्कर है ।' इन बहुविध घोर उपसर्गों में भी आचार्य भिक्षु सीना तानकर अडिग रहे और सत्य को ज्योति को प्रज्वलित रखते हुए आगे बढ़ते रहे।