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________________ एकादशः सर्गः ३३ १५२. षट्स्थानतास्पर्शनपालनायां, श्रद्धा कथा किन्तु समा हि यत्र । तत्रैव शक्येत समानभावस्ततोन्यथा सर्वविडम्बना च ॥ सिद्धांत में संयम की पालना तथा स्पर्शना 'षट्स्थानपतिता' बतलाई गई है। परन्तु श्रद्धान एवं प्ररूपणा तो सदृश ही होनी चाहिए। जहां श्रद्धान एवं प्ररूपणा समान है, वहीं मतैक्य हो सकता है। अन्यथा केवल विडंबनामात्र ही होती है। १५३. केचित्तदा केपि कदापि पश्चात्, त्रयोदशात् सप्तविनिर्गताश्च । षट् संस्थिताः श्रीमुनिमारीमालादयो महानन्दविधूतदोषाः॥ ऐसे उन तेरह संतों में से कुछ उसी समय और कुछ बाद में इस प्रकार सात संत विलग हो गए। तब महानन्द को उत्पन्न करने वाले एवं दोषों से रहित श्री भारीमालजी आदि छह संत साथ रह गए । उन संतों के नाम आगे बताये जाते हैं। १५४. श्रीभिक्षभिक्षुः स्थिरपालजीश्च, श्रीमत्फतेचन्द्रमुनिविनीतः । वाचंयम: टोकरजीमहर्षिर्महागुणी श्रीहरनाथजीश्च ॥ १५५. श्रीभारिमालो गणभारवाही, चैते हि षट् सद्गुणगौरमुक्ताः । मालानुबद्धा इव साधु यावज्जीवं स्थिताः स्वामिभिरेकदैव ॥ (युग्मम्) १. आचार्य भिक्षु २. मुनिश्री स्थिरपालजी ३. विनीत मुनिश्री फतेहचन्दजी ४. मुनिश्री टोकरजी ५ मुनिश्री हरनाथजी ६. मुनिश्री भारमलजी -ये छहों संत माला में आबद्ध सद्गुण की शुद्ध मुक्ताओं के समान यावज्जीवन आचार्य भिक्षु के साथ एकमेक होकर रहे । श्रीनाभेयजिनेन्द्रकारमरोद् धर्मप्रतिष्ठा पुनर्, यः सत्यग्रहणाग्रही सहनयराचार्यभिक्षुर्महान् । तत्सिद्धान्तरतेन चाहरचिते श्रीनत्यमलर्षिणा, श्रीमद्भिक्षुमुनीश्वरस्य चरिते सर्गोऽयमेकादशः॥ श्रीनथमल्लषिणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये केलवानगरस्यां अंधेरीमोर्या चातुर्मासिकप्रवासे यक्षस्य साक्षात्कारः, जोधपुरनगरे संघस्य तेरापंथनामकरणमित्येतत् प्रतिपादकः एकादशः सर्गः। १. एकदा (अव्यय)-साथ ही साथ ।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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