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________________ २७८ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् __ ऐसे चरण-करण के आराधक गुरुदेव के दु:खद वियोग से स्वभावतः ही नेत्रों से अविरल नीरधारा प्रवाहित करने वाले लोगों ने भिक्षु के पार्थिव शरीर को तेरह खण्ड वाले विमान में स्थापित कर, रुपयों की वर्षा (उछाल) करते हुए महान् उत्सव के साथ अन्त्येष्टि क्रिया की। ५१. स्फुरद्रत्नत्रय्या ललितहृदयाहादनविधु स्तमस्तोमेतेजस्तरुणतरणिः पुण्यविपणिः। सदा ध्यातो गीतो गरिमगुणगाथाभिरभितः, प्रवत्तां कल्याणं कलितकलया नन्दयतु सः॥ स्फुरित होने वाली रत्नत्रयी के ललित हृदय को आह्लादित करने के लिए चन्द्रमा, अन्धकार की श्यामलता को नष्ट करने के लिए मध्याह्न का तेजस्वी सूर्य, पुण्योपार्जन की हाट, सदा ध्याये जाने वाले तथा गरिमायुक्त गुण-गाथाओं से चारों ओर गाये जाने वाले, ज्ञानपूर्वक आनन्द करते हुए वे भिक्षु हमें भी कल्याण प्रदान करें। श्रीनामेयजिनेन्द्र कारमकरोद् धर्मप्रतिष्ठा पुनर्, यः सत्याग्रहणाग्रही सहनयैराचार्यभिक्षुर्महान् । तसिद्धान्तरतेन चाररचिते श्रीनत्थमल्लषिणा, श्रीमभिक्षमुनीश्वरस्य चरिते सर्गोऽयमष्टादशः ॥ मोनत्यमल्लविणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये श्रीभिक्षोरनशनपूर्वक समाधिमरणनामा अष्टादशः सर्गः। समाप्तमिदं श्रोभिक्षमहाकाव्यम् ।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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