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________________ २७२ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् ___ तब आपने कहा-'यदि कोई दूसरा व्यक्ति अनशन (संथारा) करता है तो हम स्वयं उसके निकट जाकर अत्यन्त हर्ष से उसे धार्मिक उपदेश सुनाते हैं। १७. तहि कथं मम संस्तरणे नो, श्रेयसिकी सुकथेति निशम्य । धृत्यवगाहनतः स तदाख्यात्, स्वाम्यपि स श्रुतवांच्छुभयोगः॥ फिर मेरे इस संथारे पर श्रेयस्करी यह धार्मिक देशना क्यों नहीं ? तब धैर्य धारण कर मुनि श्री भारिमालजी ने व्याख्यान दिया और महामना भिक्षु स्वामी ने भी उसे शुभ अध्यवसायों पूर्वक सुना। १८. वीतरागभगवद्वरवाण्या, प्लावितपुष्पितकर्णनिकुञ्जः । ___ आगमनंगमनादविनिद्रः, सोऽस्ति तदा जपजापवितन्द्रः॥ ___ वीतराग भगवान् की पवित्र वाणी से प्लावित होकर आचार्यश्री का कर्ण निकुञ्ज पुष्पित और फलित हो गया। आगम-नगम के होने वाले सतत नाद से जागरूक स्वामीजी उस समय जाप में तल्लीन हो गए । १९. यच्छवणेन समामृतसिद्धिर्यच्छवणेन विरागविवृद्धिः। यच्छवणेन चिदात्मसमृद्धिर्यच्छवणेन तिरोहितगृद्धिः ॥ उस समय वहां होने वाले संगान को सुनने मात्र से समतारूपी अमृत की सिद्धि, वैराग्य की वृद्धि, चेतना की समृद्धि और आसक्ति की विलुप्ति स्वतः हो जाती थी। २०. तादृशसुन्दरसुन्दरसाराः, प्रोवहमानसमुज्ज्वलधाराः। पार्श्वगसभिरनुत्तरकण्ठः, संजगिरे स्तुतिगीतिसमूहाः ॥ .. आचार्य भिक्षु के पार्श्वस्थित मुनि मधुर कंठों से गीतिकाएं, स्तुतियां गा रहे थे। वे गीतिकाएं उत्कृष्ट सारयुक्त तथा प्रवहमान निर्मल जलधारा की भांति निर्मल और पवित्र थीं। २१. सा रजनी व्ययिताऽथ तदप्रयमेध्यतिथेविवसं समुदेषीत् । आययुरार्यजना यदियन्तो, मेलकवत् समजायत तेषाम् ॥ - वह रात्री धर्म-जागरण करते-करते बीत गई। पुण्यतिथि वाला वह दिन (भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी) उदित हुआ। उस दिन बहुत बड़ी संख्या में लोग आये । उन आने वाले लोगों का एक मेला-सा लग गया। २२. दर्शनतः श्रमणेशितुरस्य, तहृदयानि विनोदभूतानि । उल्लसितानि मुखानि च तेषामूच्छितरोममयानि वपुंषि ॥
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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