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________________ पञ्चदशः सर्गः १०९ शुद्धि होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। दोनों में से एक की अशुद्धि होने पर धर्म का लवलेश भी नहीं होता । ! ३०. प्रत्याख्यानमकारि सर्वतमसां श्राद्धेन केनापि चेत्, तद्दाने किमहो जजल्प मुनिरा धर्मो हि शर्मप्रदः । श्रुत्वाश्चर्यपरोऽनुयोगरचिता किन्त्वात्मभावारसानाssस्वादी समपातकस्य विरतिः साधुं विना नो भवेत् ।। एक व्यक्ति ने स्वामीजी से पूछा - 'महाराज ! किसी श्रावक ने सर्व पापस्थानों का त्याग कर दिया। उसे आहार पानी का दान देने में क्या होगा ? ' स्वामीजी बोले- उसे दान देने में मोक्षप्रदायी धर्म होगा ।' यह सुनकर प्रश्नकर्त्ता को बहुत आश्चर्य हुआ । उसने कहा- आप तो श्रावक को दान देने में पाप मानते हैं, फिर धर्म कैसे कहा ? स्वामीजी बोले- तुम अपने प्रश्न की भाषा को देखो । जो समस्त पापों की विरति कर लेता है, वह साधु बन जाता है, श्रावक नहीं रहता । साधु को दान देने में धर्म ही है । " ३१. कश्चिद् दापितसद्धतान्यपहरेत् तद्दापकः सद्गुरु स्तत्पापप्रविभागवान् भवति स प्रत्युत्तरेनो प्रभुः । लाभोऽलाद् वसनं मनोधिकतया विक्रीय विक्रायकः, केतुर्हानिफलाधिपो न स तथा साध्वाज्यहेतुर्वरः ॥ किसी ने स्वामीजी से पूछा - ' आप किसी को त्याग कराते हैं और वह त्याग को तोड़ देता है तो पाप आपको लगता है । स्वामीजी बोलेकिसी साहूकार ने सौ रुपयों का कपड़ा बेचा। उसे काफी लाभ हुआ । खरीददार ने किसी दूसरे को वही कपड़ा दो सौ रुपयों में बेच डाला । यह सौ रुपयों का लाभ पहले वाले साहूकार को नहीं मिलेगा, वह तो उसी खरीददार को मिलेगा । यदि सारा कपड़ा जल गया तो नुकसान भी उसी को भुगतना पड़ेगा । इसी प्रकार हमने किसी को त्याग दिलाये, उसका लाभ हमें मिल चुका । त्याग लेने वाला यदि अपने लिए हुए त्याग को ठीक ढंग से पालेगा तो लाभ उसी को मिलेगा और यदि वह अपने त्याग को तोड़ेगा तो उसका पाप उसी को लगेगा ।" १. भिदृ० १०१ । २. वही, २०१ । ३ वही, १३६ । --
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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