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________________ . ९२ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् ___ जैसे रात्री के अन्धकार से आक्रान्त कमल समूह सूर्य की किरणों से विकस्वर होता है वैसे ही अपने हित में लुब्ध अनेक भव्य प्राणी स्वामीजी के वचनों से प्रबुद्ध हुए । इस प्रकार अनेक वर्षों के सतत परिश्रम से आचार्य भिक्षु को असाधारण सफलता मिली और गांव-गांव में अनेक महाव्रती और अणुव्रती बने। ७१. प्रामे ग्रामेऽनेकशः श्राद्धवर्गा, प्रामे ग्रामे श्राविकाः शाततस्वाः। प्रामे ग्रामे भक्तिमन्तः प्रसिद्धाः, पादे पादे भाग्यमाजां निधानम् ॥ गांव-गांव में आचार्य भिक्ष के अनेक श्रावक थे। गांव-गांव में अनेक तत्त्वज्ञ श्रावक-श्राविकाएं थीं तथा गांव-गांव में भक्ति करने वाले प्रसिद्ध भक्त थे । ठीक ही कहा है-भाग्यशाली के लिए पग-पग पर निधान होता है। श्रीनामेयजिनेन्द्रकारमकरोडर्मप्रतिष्ठां पुनर्, यः सत्यग्रहणापही सहनयैराचार्यभिक्षुर्महान् । तत्सिद्वान्तरतेन चारुचरिते धीनस्थमल्लर्षिणा, वृत्ते मि मुनेश्चतुर्दशमितः सर्गो बभूवानसौ ॥ श्रीनत्यमल्लर्षिणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये भिक्षुजनजन प्रतिबोधनसाफल्यनामा चतुर्दशः सर्गः।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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