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जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान /235
फट नोट
1. ' आदि. पु. भाग एक, 4/81-85 तक 2. आ. पु. भाग 1, पर्व 15-25, श्री मद्भा . पु. 1/7/10, 5/5/28, 5/3/20, अ. पु. 107/
11, मा. पु. 50/39, 40, 41, कु. पु. 61/37, 38, वायु . पु. पूर्वार्ध 33/50, 51, 52, ब्रह्मा. पु. पूर्वा. अनु. 14/59, 60, 61, वा. पु. अध्याय 74, लिङ्गपु. 47/19, 20, 21, 22, 23, 24 पूर्वार्ध, बि. पु. द्वि. 1/27, 28, जैन शासन (द्वि. सं.) पृष्ठ-300 हरि.
पु. (जैन) सर्ग 8, 9, पृष्ठ-146-184 3. जह गेरूवेण कुड्डी लिप्पइ लेवेण आम पिट्टेण ।
तह परिणामो लिप्पह सुहा सुहा यत्ति लेवेण ॥ - पं. सं. जी. स. प्र. अधि. गाथा 143 4. ढाणांगसूत्र सटीक, ढा. 1, सूत्र 51 पत्र 31-32 5. (अ) उष्णांग सूत्र सटीक, उत्तरार्ध, ढा. 6, उ. 3 सूत्र 504 पत्र 361-2 तथा समवायाङ्ग
सूत्र सटीक, समवाय-6 पत्र 11-1 (ब) किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छठ्ठा य, नामाइंतु जहक्कमा
__ - उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 34, गाथा 3 6. द्रव्यलोक प्रकाश, पृष्ठ-112-126 7. देवा चउव्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयओ सुण । भीमिज्जवाणमन्तरजोइस वेमाणिया तहा ।
- उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 36, गाथा 202 8. पिसायभूया जक्खा य, रक्खासा किन्नरा किंपुरिसा । महोरगा च गन्धव्वा, अट्ठविहा वाणमन्तरा ॥
___ - वही. गाथा 205 9. व्यन्तराः किन्नरकिंपुरुषमहोरगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः।
. - तत्त्वार्थसूत्र सटीक, अध्याय 4, सूत्र 11 10. स्युः पिशाचा भूता यक्षा राक्षसाः किन्नरा अपि । किंपुरुषा महोरगा, गन्धर्वा व्यन्तरा अमी।
- अभिधान चिन्तामणि देवकाण्ड 2, श्लोक 91 11. जीवाजीवो 1-2 तथा पुण्यं 3, पापात्रय 4-5 संवरो 6 बंधो 7 विनिर्जरा 8 मोक्षो 9 नवतत्त्वानि तन्यते ।'
- षडदर्शन-समुच्यय श्लोक 47 . 12. जीवाजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावाऽसवो तहा । संवरो निजरा मोक्खो तन्तेए तहिया नवा
- उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 28, गाथा 14 13. ठाणांग सूत्र, सूत्र 665 14. पिशाचा भूतयक्षाश्च राक्षसाः किन्नरा अपि । किंपुरुषामहोरगा ।
- लोक प्रकाश प्रथम विभाग, द्रव्यलोक सर्ग 8, श्लोक 29 15. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।
- तत्त्वार्थसूत्र सटीक, 1/1 16. वही. 1/2 17. मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलानि ज्ञानम् ।
- तत्त्वार्थसूत्र 1/9 18. वही. 1/21 19. आदि पु. भाग 1, 24/94