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जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान / 223
चित्राङ्गद :
बनारस का राजा । अकम्पन का बड़ा भाई । इन्हीं के आदेश से विद्या देवी स्वयंवरागत राजाओं का परिचय करायी थी ।
सुमति :
काशिराज अकम्पन का एक मंत्री । जिसने अर्ककीर्ति और जयकुमार के युद्ध को रोकने का प्रयास किया था ।
मरीचि :
भगवान् ऋषभ देव के पौत्र तथा भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि थे। ऋषभ देव की दीक्षा के समय उनके साथ दीक्षा लेने वालों में मरीचि भी एक था। पर वे दीक्षा के अभिप्राय से अनभिज्ञ थे । छह माह भी नहीं हो पाये थे कि उनमें से कुछ राजा परिषहो को सहन नहीं कर सके। उनमें से कितने ही भूख से पीड़ित हो कायोत्सर्ग छोड़कर फल खाने लगे और कितने ही संतृप्त शरीर होने के कारण शीतल जल में जा घुसे। उन सब राजाओं में भरत का पुत्र मरीचि बहुत अहंकारी था इसलिये वह गेरुआ वस्त्र धारण कर परिव्राजक बन गया तथा वलकलों को धारण करने वाले कितने ही लोग उसके साथ हो गये । यही कपिल मत का संस्थापक हुआ।
हेमाङ्गद काशिराज अकम्पन के एक हजार पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र था । सुकेतु श्री और सुकान्त भी हेमाङ्गद के अनुज और अकम्पन के कनिष्ठ पुत्र थे । इन पुत्रों से घिरा हुआ अकम्पन इन्द्र सदृश सुशोभित होता था ।
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सोमप्रभः
सोमप्रभ हस्तिनापुर का राजा । लक्ष्मीवती नाम की उसकी स्त्री थी। राजा सोमप्रभ की लक्ष्मीवती रानी से जयकुमार नामक पुत्र तथा विजय आदि और चौदह पुत्र उत्पन्न हुए ।
तदनन्तर राजा सोमप्रभ जयकुमार को राज्य सौंपकर भगवान् वृषभदेव के समीप जाकर अपनी पत्नी तथा भाई श्रेयांस के साथ दीक्षा धारण कर ली ।
सुलोचना :
काशी के राजा अकम्पन की पुत्री। इसके स्वयंवर में जयकुमार अर्ककीर्ति आदि अनेक राजा आये थे । सुलोचना द्वारा जयकुमार के वरण किये जाने पर अर्ककीर्ति को अपने कुल का गर्व हुआ और जयकुमार से युद्ध । युद्ध में जयकुमार विजयी और सुलोचना से विवाह । कालान्तर में कबूतरों का युगल देखने से पूर्वभव का ज्ञान तत्पश्वचात् अवधिज्ञान से मुक्त हुई । जय के दीक्षा लेने के बाद ब्राह्मी आर्यिका के पास दीक्षा ग्रहण कर लिया और अच्युत स्वर्ग के अनुत्तर विमान में देवता बनकर पैदा हुई ।