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नवम अध्याय / 213 मैंने शोध के विगत अध्यायों में की है । जय का सवंशीय धीरोदात्त होना विहार, सुलोचना के विवाह, युद्ध-जय पराजय पुनःसन्धि तथा प्रेम व्यवहार आदि कवि की प्रतिभा और कल्पनाशक्ति कों प्रदर्शित करने में पूर्ण समर्थ है । विवाह के अनन्तर जय-सुलोचना के क्रीडा आदि प्रसङ्ग, शृङ्गार प्रदर्शन से भी काव्य ही महत्ता में वृद्धि हुई है ।
अन्य अनेक रमणीय वर्णनों के साथ-साथ लता- वृक्षादि आलिङ्गनों द्वारा उद्दीपन का पूर्ण प्रदर्शन भी है । महाकाव्य पद्धति के अनुसार सन्ध्या, रात्रि, सूर्योदय, सूर्यास्त प्रभृति का वर्णन भी पर्याप्त रूप में किया गया है।
विभ्रम विलास के अङ्गभूत पान-गोष्ठी के वर्णन को भी स्थान दिया गया है । विरह व्यथा जो प्रेम की उत्कृष्ट कसौटी है, उसको महाकवि ने पर्याप्त स्थान दिया है । विभिन्न नायिकाओं की विभिन्न साधनों से सम्पन्न क्रीडा भी दिखायी गयी है।
रात्रि क्रीडा वर्णन मनोरम है । सुरत वासना का भी सफल चित्रण किया गया है । अनादिरूपा सुलोचना अनन्तरूप जयकुमार इन दोनों की आदि अनन्त रूपा स्मृति क्रिया बतलायी गयी है जो कामशास्त्रोक्त मार्ग की प्रशस्ति है ।
प्रभात वर्णन अर्हन् भगवान् की सुन्दर स्तुति भी इस काव्य में यथेष्ट रूप से की गयी
जयकुमार के द्वारा सन्ध्या वन्दन एवं समयोचित वर्णन भी दिखाया गया है । तदनन्तर जिन भगवान् की विस्तृत स्तुति की गयी है, जिसके द्वारा जैन दर्शन का भी कलेवर अभिव्यक्त हो जाता है । सन्ध्यावन्दनादि प्रदर्शन व्यक्त करता है कि कवि शास्त्र मर्यादा का कितना पालक
___इन सबके अतिरिक्त इस विस्तृत महाकाव्य में प्रसङ्गानुसार यान, सरित् सरोवर, कैलास शोभा का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है ।
यथास्थान जय-सुलोचना के पूर्वजन्मों के वृत्तान्त द्वारा कवि ने अद्भुत की सृष्टि की है । प्रसङ्गानुसार अन्य रसों का भी सम्यक् विनिवेश किया गया है ।
जैन-धर्म की उत्कृष्टता के साथ-साथ मुनि दर्शन, उनके प्रति अनुराग प्रदर्शन भी कवि ने अपनी सहज शक्ति से दिखाया है । वैराग्योत्पादक संगीत भी स्थायी टेक के माध्यम से यथा स्थान गाये गये हैं । जय-सुलोचना का जिन मन्दिर में जाना, मन्त्रपूत जल स्नान, जैन सम्प्रदाय के अनुसार वस्त्रादि धारण कवि के जैनानुराग को प्रदर्शित करते हैं । ___ जीवन के अन्तिम समय में नायक द्वारा ऋषभदेव के शरण में जाना, उपदेश लेना, तदनुसार तपश्चर्या में प्रवृत्त होना और शिवत्व की प्राप्ति आदि विषय जहाँ कवि के जैन प्रेम को प्रदर्शित करते हैं, वहीं काव्य प्रयोजन को भी अभिव्यक्त करते हैं । जिसका तात्पर्य