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192/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन 77. ज. म. 23/58, 59, 60 78. ज.. म. 23/61, 62, 63, 64, 65, 66, 67, 68, 69, 70 79. चमत्कारं करोत्येव वचः सत्त्वौचितं कवेः । विचाररुचिरोदारचरितं सुमतेरिव ॥
- औ. वि. च. का. 31 80. ज. म. 25/4 81. अकदर्थनया सूक्तमभिप्रायसमर्थकम् । चित्तमावर्जयत्येव सतां स्वस्थमिवार्जवम् ॥
- औ. वि. च. का. 32 82. ज. म. 14/8, 9 83. स्वभावौचित्यमाभाति सूक्तीनां चारुभूषणम् । अकृत्रिममसामान्यं लावण्यमिव योषिताम् ॥
- औ. वि. च. का. 33 84. ज. म. 13/19 85. सारसङ्ग्रहवाक्येन काव्यार्थः फलनिश्चितः । ____ अदीर्घसूत्रव्यापार इव कस्य न संमतः ॥
- औ. वि. च. का. 34 86. ज. म. 26/73 87. वही. 26/7488. वही. 26/75 89. ज. म. 26/76 90. वही. 26/77 . 91. प्रतिभाभरणं काव्यमुचितं शोभते कवेः ।।
निर्मलं सुगुणस्येव कुलं भूतिविभूषितम् ॥ - औ. वि. च. का. 35 92. ज. म. 14/26 93. अवस्थौचित्यमाधत्ते काव्यं जगति पूज्यताम् । विचार्थमाणरुचिरं कर्तव्यमिव धीमताम् ॥
- औ. वि. च. का. 36 94. ज. म. 17/110 95. उचितेन विचारेण चारुतां यान्ति सूक्तयः।। वेद्यसत्त्वावबोधेन विद्या इव मनीषिणाम् ॥
- औ. वि. च. का. 37 96. ज. म. 25/
3 97. वही. 25/4 98. नाम्ना कर्मानुरुपेण ज्ञायते गुणदोषयोः । काव्यस्य पुरुषस्येव व्यक्तिः संवादपातिनी ॥
__ - औ. वि. च. का. 38 99. ज. म. 6/30, 33
100. ज. म. 6/12, 34 101. पुर्णार्थदातुः काव्यस्य सन्तोषितमनीषिणः ।
उचिताशीपस्येव भवत्यभ्युदयावहा ॥ - औ. वि. च. का. 39 102. ज. म. 17/136 103. वही. 22/87 104. वही. 25/89 105. उचितार्थविशेषेण प्रबन्धार्थः प्रकाशते । गुणप्रभावभव्येन विभवेनेव सज्जनः ॥
- औ. वि. च. का. 13 106. ज. म. 10/80 107. ज. म. 1/9 108. वही. 7/92 109. वही. 11/88 110. वही. 17/57 उत्त. 111. वही. 18/26 तृ. च. 112. वही. 1/72 113. ज. म. 20/26 114. वही. 13/54 115. वही. 9/15 पू. 116. वही. 10/37 उ. . 117. वही. 10/88 118. वही. 20/19 119. ज. म. 15/33 120. वही. 25/88 121.ज. म. 20/13 122. वही. 20/14 123. वही. 19/115
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