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________________ षष्ठ अध्याय /147 हो अर्थात् प्रसाद मात्र गुण के व्यंजक वर्गों के प्रयोग हों, पाँच अथवा छः पदों का समास हो, ऐसी रचना को पाञ्चाली रीति कहते हैं । परन्तु भोज ने कहा है जहाँ ओज और कान्तिगुण से युक्त पाँच या छः पदों के समास हों, कोमल मधुर रचना हो उसे पाञ्चाली रीति कहते हैं । जयोदय महाकाव्य में पाञ्चाली रीति का भी बहुशः स्थलों में महाकवि ने प्रयोग किया है, जिसका एक उदाहरण देखिए "मनो ममैकस्य किलोपहारः बहुष्वथान्यस्य तथाऽपहारः । किमातिथेयं करवाणि वाणिः हृदेऽप्यहृद्येयमहो कृपाणी ॥46 यहाँ प्रसाद गुण के प्रसङ्ग में दिखाये गये पद्य में पाञ्चाली रीति अत्यन्त रम्य है । इसमें संयुक्ताक्षरों का आधिक्य नहीं है तथा वर्गान्त वर्ण के साथ (अनुस्वार पर सवर्ण करके) वर्णो के प्रयोग भी नहीं है तथा अर्थ सुबोध होने से पाञ्चाली रीति चमक उठी है । इसी प्रकार इस महाकाव्य के अन्यत्र स्थलों में भी यह रीति दर्शनीय है"हृदये जयस्य विमले प्रतिष्ठिता चानुविम्बिता माला । मग्नामग्रतयाभात् स्मरशरसन्ततिरिव विशाला ॥47 - यहाँ इस पद्य में जयकुमार के वक्षस्थल पर पड़ी हुई माला का वर्णन किया गया है। जयकुमार के निर्मल हृदय पर प्रतिष्ठित (स्थापित) एवं प्रतिफलित वह वरमाला कुछ भीतर घुसे हुए के समान प्रतीत हो रही थी जिससे यह ज्ञात होता था कि कामदेव से (पुष्पमय) विशाल वर्णों की पंक्ति पड़ी हुई है । अर्थात् वरमाला पहन लेने से वह जयकुमार सकाम सा हो गया । लाटी : ___जहाँ पर वैदर्भी और पाञ्चाली रीति में आये हुए वर्गों का प्रयोग एवं रचना की स्थिति हो ऐसी रचना को लाटी रीति कहते हैं । जयोदय महाकाव्य में लाटी रीति भी बहुशः स्थलों में व्यवहृत है। जैसे"मृताङ्गनानेत्रपयःप्रवाहो मदाम्भसा वा करिणामथाहो । प्रवर्ततेऽदस्तु ममानुमानमुदगीयतेऽसौ यमुनाभिधानः ॥149 यहाँ युद्ध-भुमि में मरे हुए शत्रु वीरों की स्त्रियों के आँसुओं का जल बह रहा था अथवा हाथियों का मदजल समूह बह पड़ा था इसलिये आश्चर्य है कि हमें तो यही प्रतीत होता है कि वही यमुना नदी के नाम से कहा जा रहा है । यहाँ पर 'मृताङ्गना' 'मदाम्भसां' में 'म' 'न' 'न' आदि वर्गों का प्रयोग वैदर्भी से सम्बन्धित है तथा अन्य वर्ण पा चाली के पोषक हैं । इन सबकों एकत्र समन्वित होने से लाटी रीति की योजना रम्य है ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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