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गौडी
असमास
144/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन वैदी
पाञ्चाली ईषद् समास
समास स्थानानुप्रास ईषदनुप्रास
अनुप्रास योगवृत्ति उपचार
योगवृत्ति परम्परा इन तीन रीतियों के अतिरिक्त 'मागधी' रीति का निर्देश 'कर्पूरमंजरी' की प्रस्तावना में और 'मैथिली' रीति का वर्णन बाल रामायण के दशम अङ्क में राज शेखर ने किया है। कुन्तक ने दण्डी का अनुकरण करते हुए रीति का मार्ग नाम रख दिया है । ये कवि स्वभाव को रीति का निर्णायक आधार मानते हैं । तीन रीतियों के स्थान पर इन्होंने कवि स्वभावानुरूप सुकुमार मार्ग, विचित्र मार्ग और मध्यम मार्ग इन तीन नये मार्गों की उद्भावना की है ।
भोजराज के पहले रीतियों की संख्या चार थी । उन्होंने उसमें दो नामों को और जोड़ दिया (1) आवन्तिका और (2) मागधी । भोज ने अपने सरस्वती कण्ठाभरण में इन छः प्रकार की रीतियों का वर्णन किया है । इन्होंने रीति की व्युत्पत्तिमूलक परिभाषा इस प्रकार की है
"वैदर्भादि कृतः पन्थाः काव्ये मार्ग इति स्मृताः । रीङ्गताविति धातोस्सा व्युत्पत्या रीतिरुच्यते ॥"
शारदातनय ने उक्त छः रीतियों में सौराष्ट्री और द्राविडी नामक दो और रीतियों को जोड़ते हुए अपने भाव प्रकाश में यह कहा कि इन रीतियों की संख्या एक सौ पाँच तक पहुँच सकती है । उनके मत में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक रीति है
"सोराष्ट्री द्राविडी चेति रीति द्वयमुदाहृतम् । तत्तद्देशीयरचना रीतिस्तद्देशनामभाक् ॥" "प्रतिवचनं प्रतिपुरुषं तदवान्तरजातितः प्रतिप्रीति । आनन्त्यात् सांक्षिप्य प्रोक्ता कविभिश्चतुर्विधेत्येषा ॥ तासु पञ्चोत्तरशतं विधाः प्रोक्ता मनीषिभिः ।" "त एवाक्षरविन्यासास्ता एव पदपङक्तयः । पुंसि पुंसि विशेषेण कापि कापि सरस्वती ॥"
वैसे प्रत्येक देश की रीति में कुछ वैलक्षण्य हो सकता है । उस दृष्टि से विभाग करें तो रीतियों के अनन्त विभाग हो जायेंगे ।
रीतियों का नामकरण देश विशेष के नाम से ही है । क्योंकि आरम्भ काल में जिस प्रदेश के निवासी जिस शैली में विशिष्टता प्राप्त किये उस देश का नाम उस शैली के द्वारा ही प्रसिद्ध हुआ, जैसे वैदर्भी विदर्भ देश (वरार) नाम से प्रसिद्ध हुई । इसी प्रकार गौडी वंश