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________________ (1) गृहस्थों को अनर्थ से द्रव्य प्राप्त होता है। और वह अनर्थ में ही व्यय होता है, अर्थात् आय व्यय दोनों कर्म बन्धन के कारण हैं। इस हालत में वह द्रव्य यदि मन्दिर बनाने में लगाया जाए तो सुख एवं कल्याण का कारण होता है। क्योंकि एक मनुष्य के बनाये हुए मन्दिर से हजारों लाखों मनुष्य कल्याण प्राप्त करते हैं। जैसे आबू आदि के मन्दिरों में दर्शन का लाभ अनेक विदेशी तक भी लेते हैं। ____(2) हमेशा मन्दिर जाकर पूजा करने वाला अन्याय, पाप और अधिकरण करने से डरता रहता है, कारण उसके संस्कार ही ऐसे हो जाते हैं। ____(3) मन्दिर जाने का नियम है, तो वह मनुष्य प्रतिदिन थोड़ा बहुत समय निकाल वहां जा अवश्य प्रभु के गुणों का गानं करता है और स्वान्तःकरण को शुद्ध बनाता है। (4) हमेशा मन्दिर जाने वाले के घर से थोड़ा बहुत द्रव्य शुभ क्षेत्र में अवश्य लगता है, जिससे शुभ कर्मों का संचय होता है। .. (5) मन्दिर जाकर पूजा करने वालों का चित्त निर्मल और शरीर आरोग्य रहता है, इससे उनके तप, तेज और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। (6) मन्दिर की भावना होगी तो वे नये 2 तीर्थों के दर्शन और यात्रा करने को भी अवश्य जायेंगे। जिस दिन तीर्थ यात्रा निमित्त घर से रवाना होते हैं उस दिन से घर का प्रपञ्च छूट जाता है। और ब्रह्मचर्य व्रत पालन के साथ ही साथ, यथाशक्ति तपश्चर्या या दान आदि भी करते हैं, साथ ही परम निवृत्ति प्राप्त कर ध्यान भी करते हैं। . (7) आज मुट्ठी भर जैन जाति की भारत या भारत के बाहर जो कुछ प्रतिष्ठा शेष है वह इसके विशालकाय, समृद्धि-सम्पन्न मंदिर एवं पूर्वाचार्य प्रणीत ग्रन्थों से ही है। . (8) हमारे पूर्वजों का इतिहास और गौरव इन मन्दिरों से ही हमें मालूम होता है। (9) यदि किसी प्रान्त में कोई उपदेशक नहीं पहुँच सके, वहां भी केवल मंदिरों के रहने से धर्म अवशेष रह सकता है, नितान्त नष्ट नहीं होता। अरिहा पूजन अरोचका नर नरके जावे ऐसा पूज्य श्री वीर विजय म. ने (31
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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