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________________ अध्याय (28) उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 10 अष्टापद के मन्दिर, 18 वा उदाइराजा की रानी प्रभावती के गृह मन्दिर का अधिकार, अध्ययन 29 में चैत्य वन्दन का फल यावत् मोक्ष बतलाया है। (29) दशवैकालिक सूत्र जिन प्रतिमा के दर्शन से शय्यंभव भट्टको प्रतिबोध हुआ । ( 30 ) नन्दीसूत्र में विशाला नगरी में जिन चैत्य को महाप्रभाविक कहा है। ( 31 ) अनुयोगद्वार सूत्र में चार निक्षेप का अधिकार में स्थापना निक्षेप अरिहन्तों की मूर्ति- अरिहन्तों की स्थापना कही है। (32) आवश्यक सूत्र में अरिहन्त चेइआणं तथा “कित्तिय वंदिय महिया " जिसमें कित्तिय वंदिय को भाव पूजा और महिया को द्रव्य पूजा कहा है। इन 32 सूत्रों के अलावा भी सूत्रों में तथा पूर्वधराचार्यों के ग्रन्थों में जिन - प्रतिमा का विस्तृत वर्णन है । पर आप लोग 32 सूत्र ही मानते हैं इसलिये यहाँ 32 सूत्रों में ही जिन प्रतिमा का संक्षिप्त से उल्लेख किया है । प्र. - इसमें कई सूत्रों के आपने जो नाम लिखें हैं वहां मूर्तिपूजा मूल पाठ में नहीं पर टीका नियुक्ति में है, वास्ते हम लोग नहीं मानते हैं? उ. यह ही तो आपकी अज्ञानता है कि स्थविरों के रचे उपांगादि सूत्रों को मानना और पूर्वधरों की रची निर्युक्ति टीका नहीं मानना । भला पहले दूसरे सूत्रों के अलावा 30 सूत्रों के मूल पाठ में मूर्तिपूजा का उल्लेख है, वे तो आप को मान्य हैं। यदि है तो उसको तो आप मान लीजिये जिससे आपका कल्याण हो । - प्र. - पांच पदों में मूर्ति किस पद में है ? उ. - अरिहन्तों को मूर्ति अरिहन्त पद में और सिद्धों की मूर्ति सिद्ध पद में है । प्र. - चार शरणों में मूर्ति किस शरण में है ? उ. - मूर्ति अरिहन्त और सिद्धों के शरणा में है। प्र. - सूत्रों में अरिहन्त का शरणा कहा है पर मूर्ति का शरणा नहीं कहा है? अहं छोड़ो अर्हम् बन जाओगे । (22
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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