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( 4 ) श्री समवायांग सूत्र के सतरहवें समवाय में जंघाचारण विद्याचरण मुनियों के यात्रा वर्णन का उल्लेख है ।
(5) श्री भगवती सूत्र शतक 3 उ. 1 के चमरेन्द्र के अधिकार में मूर्ति का शरण कहा है।
( 6 ) श्रीं ज्ञाता सूत्र अध्याय 8 में श्री अरिहन्तों की भक्ति करने से तीर्थंकर गोत्र बन्धता है तथा अध्याय 16 में द्रौपदी महासती ने 17 भेद से पूजा की है।
(7) श्री उपासक दशांग सूत्र आनन्दाधिकार में जैन मूर्ति का उल्लेख
है ।
( 8 ) श्री अन्तगड़ और अनुत्तरोववाई सूत्र में द्वारिकादि नगरियों के अधिकार में उत्पातिक सूत्र सदृश जैन मन्दिरों का उल्लेख है।
( 10 ) प्रश्न व्याकरण सूत्र तीसरे संवरद्वार में जिन प्रतिमा की वैयावच्च (रक्षण) कर्म निर्जरा के हेतु करना बतलाया है ।
(11) विपाक सूत्र में सुबाहु आदि ने जिन प्रतिमा पूजी है।
(12) उत्पातिक सूत्र में मुहल्ले 2 जैन मंदिर में तथा अंबड श्रावक ने प्रतिमा का वन्दन करने की प्रतिज्ञा ली थी ।
(13) राजप्रश्नीय सूत्र में सूरियाभ देव ने सत्रह प्रकार से पूजा की है। (14) जीवाभिगम सूत्र में विजयदेव ने जिन प्रतिमा पूजी है। (15) प्रज्ञापना सूत्र में ठवणा सच कहा है।
( 16 ) जम्बुद्वीप प्रज्ञपति सूत्र में 269 शाश्वते पर्वतों पर 91 मन्दिर तथा जम्बुदेव ने प्रतिमा पूजी । आदीश्वर के निर्वाण के बाद उनकी चीता पर इन्द्र महाराज ने रत्नों के स्थूभ 'बनाये |
( 17 ) चन्द्र प्रज्ञपति सूत्र में चन्द्र विमान में जिन प्रतिमा ।
( 18 ) सूर्य प्रज्ञपति सूत्र में सूर्य विमान में जिन प्रतिमा । (19.23) पांच निरयावलिका सूत्र नगरादि अधिकार में जिन प्रतिमा । ( 24 ) व्यवहार सूत्र उद्देशा पहला आलोचनाधिकार में जिन प्रतिमा । ( 25 ) दशाश्रुत स्कन्ध सूत्र, राजगृह नगराधिकारे जिन प्रतिमा । ( 26 ) निशीथ सूत्र जिन प्रतिमा के सामने प्रायश्चित्त लेना कहा । ( 27 ) बृहत्कल्प सूत्र नगरियों के अधिकार में जिन चैत्य हैं।
बुढ़ापे में दोषदृष्टि- अन्य के दोष ही देखना, दोनों खतरनाक है, बचिए। (21