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के गलों में रहे मिथ्यात्वी देवों के फूलों को छुड़वाईये। चोरी, व्यभिचार, विश्वासघात, धोखाबाजी आदि जो महान् कर्म बन्ध के हेतु हैं इनको छुड़वाइये? क्या पूर्वोक्त अनर्थ के मूल कार्यों से भी जैन मन्दिर में जाकर नमस्कार व नमोत्थुणं देने में अधिक पाप है कि आप पूर्वोक्त अधर्म कार्यों की उपेक्षा कर जैन मन्दिर मूर्तियां एवं तीर्थ यात्रा का त्याग करवाते हो। महात्मन्! जैन मन्दिर मूर्तियों की सेवा भक्ति छोड़ने से ही हम लोग अन्य देवी देवताओं को मानना व पूजना सीखे हैं। वरन नहीं तो गुजरातादि के जैन लोग सिवाय जैन मन्दिरों के कहीं भी नहीं जाते हैं। मूर्ति विरोधी उपदेशकों से आज कई अौं सेमंदिर नहीं मानने का उपदेश मिलता है। पर हमारे पर इस उपदेश का थोड़ा भी असर नहीं होता है कारण हम जैन हैं हमारा जैन मन्दिरों के बिना काम नहीं चलता है। जैसे - जन्मे तो मन्दिर, ब्याहें तोमन्दिर, मरें तो मन्दिर, अट्ठाई आदि तप करें तो मन्दिर, आपद समय अधिष्ठायक देव को प्रसन्न करें तो मन्दिर, संघ पूजा करें तो मन्दिर, संघ पूजा देवें तो मन्दिर, दीपमालिकादिपर्व दिनों में मन्दिर, पर्युषणों में मन्दिर, तीर्थ यात्रा में मन्दिर, इत्यादि मन्दिर बिना हमारा काम नहीं चलता है। भला वैष्णवों के रेवाड़ी, मुसलमानों के ताजिया, तो क्या जैनों के खासाजी (वरघोड़ा) होना अनुचित है? नहीं अवश्य होना ही चाहिये । यदि जैनों के वरघोड़ान हो तो बतलाईये हम और हमारे बाल-बच्चे किस महोत्सव में जावें? महाराज ! जिन लोगों ने जैनों को जैन मंदिर छुड़वाया है उन्होंने इतना मिथ्यात्व बढ़ाया है कि आज जैनियों के घरों में जितने व्रत वरतोलिये होते हैं वे सब मिथ्यात्वियों के ही हैं। हिन्दू देवी देवता को तो क्या? पर मुसलमानों के पीर पैगम्बर और मस्जिदादि की मान्यता पूजन से भी जैन बच नहीं सके हैं। क्या यह दुःख की बात नहीं है? क्या यह आपकी कृपा (!) का फल नहीं है? जहां संगठन और एकता का आन्दोलन हो रहा हो वहां आप हम को किस कोटि में रखना चाहते हैं?"
प्र. - भला! मर्ति नहीं मानने वाले तो अन्य देवी देवताओं के यहाँ जाते हैं, पर मूर्ति मानने वाले क्यों जाते हैं? . परप्रशंसा के द्वारा गुणानुरागी बनने से आप में सम्यक्त्व स्थिर रह सकेगा। (18