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जैन धर्म में
प्रभु दर्शन-पूजन मंदिर की मान्यता थी ?
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शास्त्रोक्त प्रमाण और तर्क पढ़कर दिल व दिमाग को दुरुस्त कीजिए
प्रकाशक
श्री जैन श्वे. संघ, मालवाड़ा के ज्ञान खाते से आद्य लेखक - मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी संशोधक : 400 तेले के तपस्वी मेवाड़देशोद्धारक प. पू. आचार्य देवेश श्री जितेन्द्रसूरीश्वरजी म.
मुद्रक : मनोहर प्रेस, ब्यावर 256441