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________________ ७. विनय २. विणओ सासणमूलो विणयादी संजमो तवो णाणं । विणयेण विप्पहूणस्स कुदो धम्मो कुदो य तवो । । ५. कित्ती मेत्ती माणस्स भंजणं गुरूजणे य बहुमाणो । तित्थयराणं आणा गुणाणुमोदो य विणयगुणा । । विनय जिन शासन का मूल है। विनय से संयम व ज्ञान की सिद्धि होती है। जो विनय से रहित होता है, उसका कैसा धर्म और कैसा तप ? ३. विणओ मोक्खद्दारं विणयादो संजमो तवो णाणं ।' (मू० ३८६ क, ख ) विनय मोक्ष का द्वार है। विनय से ही संयम, तप और ज्ञान होता है । ४. अज्जवमद्दवलाहवभत्तीपल्लादकरणं च । (मू० ३८७ ग, घ ) आर्जव, मार्दव, लोभ का त्याग, गुरुओं की भक्ति, सबको प्रहलाद उत्पन्न करना - ये सब विनय के गुण हैं। ६. जम्हा विणेदि कम्मं अट्ठविहं चाउरंगमोक्खो य । तम्हा वदंति विदुसो विणओत्ति विलीणसंसारा ।। ५७ (मू० ३८८) कीर्ति, मैत्री, गर्व-त्याग, गुरुजनों का बहुमान, तीर्थंकरों की आज्ञा का पालन, गुणों में प्रमोद - इतने गुण विनय करने वाले के प्रगट होते हैं। (मू० ७ : १०४) ( मू० ५७८) चूँकि आठ प्रकार के कर्मों का नाश करता है, चतुर्गति रूप संसार से मुक्त करना है, इस कारण से संसार से पार हुए पण्डित पुरुष इसको विनय कहते हैं । ७. मूलाओ खंधप्पभवो दुमस्स खंधांओ पच्छा समुवेंति साहा । साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता तओ से पुप्फ च फलं रसो य ।। (द० ६ (२) : १) ८. एवं धम्मरस्स विणओ मूलं परमो से मोक्खो । जेण कित्तिं सुयं सिग्घं निस्सेसं चाभिगच्छइ ।। वृक्ष के मूल से सबसे पहले स्कन्ध पैदा होता है, स्कन्ध के बाद शाखाएँ और शाखाओं से दूसरी छोटी-छोटी शाखाएँ निकलती हैं। उनसे पत्ते निकलते हैं। इसके बाद क्रमशः फूल, फल और रस उत्पन्न होते हैं । १. भग० आ०, १२६ । २. भग० आ०, १३० । ३. भग० आ०, १३१ । (द० ६ (२) : २)
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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