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________________ भूमिका भगवान महावीर का जन्म ई० पू० ५६६ में सुप्रसिद्ध वज्जी या लिच्छवी गणतंत्र की राजधानी वैशाली के क्षत्रिय कुण्डग्राम (बिहार) में हुआ। उनके पिता राजा सिद्धार्थ उस समय के वज्जी गणराज्य के शासकों में एक थे। ___ राजकीय परिवार में जन्म लेने तथा सभी प्रकार की सुख-सुविधा एवं साधनसामग्री उपलब्ध होने के बावजूद महावीर ने तीस वर्ष की आयु में संसार-त्याग कर दीक्षा ग्रहण कर ली। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पाँच महाव्रतों को अंगीकार कर उन्होंने कठोर मुनि-जीवन की साधना की। आत्म-संयम, अप्रमाद (जागरूकता), अकषाय और समत्व की सतत् साधना उनके जीवन के अंग थे। साधना में आने वाले उपसर्ग और परीषहों को उन्होंने समभाव से सहन किया। भूख, प्यास, ठण्ड, गर्मी, दंश-मशक (मच्छर आदि के काटने) तथा अज्ञानी एवं अनार्य लोगों के द्वारा दी गई बर्बर यातनाओं को भी महावीर ने सम्पूर्ण समभाव के साथ सहन किया। बारह वर्षों की इस साधना के बाद में सर्वथा 'वीतराग' या 'जिन' बने तथा सम्पूर्ण निरावरण ज्ञान-केवलज्ञान (सर्वज्ञता) को उन्होंने प्राप्त किया। वे जैन धर्म के २४वें तीर्थकर बने। जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म एक प्रागऐतिहासिक धर्म है तथा २३ तीर्थंकर भगवान महावीर से पूर्व हो चुके थे। ___भारत की सर्वसाधारण जनता को तीस वर्ष तक धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों का उपदेश करने के बाद ७२ वर्ष की आयु में पावा में ई० पू० ५२७ में भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया। वे सभी बन्धनों और सांसारिक आवागमन से सदा-सदा के लिए मुक्त हो गये। धर्म-सिद्धान्त भगवान महावीर ने निम्न धर्म-सिद्धान्तों का अपने जीवन में पालन किया और लोगों को उनका उपदेश दिया __ अहिंसा : सभी प्राणियों और सभी जीवों को जीने का समान अधिकार है। सभी को जीवन पसंद है और मृत्यु नापसंद है। जब कोई किसी की हिंसा करता है, तो वह अपने-आप की ही हिंसा है। किसी भी प्राणी या जीव का हनन मत करो, किसी को घायल मत करो, किसी को दास मत बनाओ, किसी को पीड़ा मत दो, किसी का शोषण मत करो। सब के साथ मैत्री भाव रखो।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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