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विनय
१. विनय : मानसिक, वाचिक, कायिक १. अब्भुट्ठाणं सण्णदि आसणदाणं अणुप्पदाणं च।
किदियम्म पडिरूवं आसणचाओ य अणुव्वजणं ।। (मू० ३८२)
अभयुत्थान-आचार्य आदि को देखकर उठना, नमस्कार, आसन-दान, अनुप्रदान-ग्रन्थ आदि देना, कृतिकर्म प्रतिरूप-भक्ति पूर्वक शीतादि का निवारण, आसन-त्याग-ऊँचे आसन आदि का त्याग, अनुदान-दूर तक साथ जाना-ये काय-विनय के सात भेद हैं। २. पूयावयणं हिदभासणं च मिदभासणं च मधुरं च ।
सुत्ताणुवीचिवयणं अणिठुरमकक्कसं वयणं ।। उवसंतवयणमगिहत्थवयणमकिरियमहीलणं वयणं। एसो वाइयविणओ जहारिहं होदि कादव्वो।। (मू० ३७७, ३७८)
पूज्य वचनों से बोलना, हितकर बोलना, थोड़ा बोलना, मधुर बोलना, आगम के अनुसार बोलना, अनिष्ठुर और अकर्कश वचन बोलना, क्रोधादि रहित वचन बोलना, आरम्भ रहित वचन बोलना, असि आदि की क्रिया से असम्पृक्त वचन बोलना, अवहेलना रहित वचन बोलना-यह वाचिक विनय है। इसे यथायोग्य जानना चाहिए। ३. हिदमिदपरिमिदभासा अणुवीचीभासणं च बोधव्व।
अकुसलमणस्स रोधो कुसलमणपवत्तओ चेव।। (मू० ३८३)
हितकर बोलना, थोड़ा बोलना, परिमित बोलना, विचारपूर्वक शास्त्रानुसार बोलना-ये चार भेद वचन-विनय के हैं। अकुशल मन का निरोध और कुशल मन की प्रवृत्ति-ये दो भेद मानसिक-विनय के हैं। ४. पापविसोतियपरिणामवज्जणं पियहिदे य परिणामो।
णादवो संखेवेणेसो. माणसिओ विणओ।। (मू० ३७६)
हिंसादि पाप-परिणाम का त्याग, सम्यक्त्व आदि की विराधना के परिणाम का त्याग, प्रिय और हित में परिणाम-यह मानसिक-विनय कहा गया है।