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________________ ६. कामभोग ५. सव्वं विलवियं गीयं सव्वं नटं विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ।। (उ० १३ : १६) सर्व गीत विलाप हैं, सर्व नाट्य विडम्बना हैं, सर्व आभूषण भार हैं और सर्व कामभोग दुःखावह हैं। ६. गिद्धोवमे उ नच्चाणं, कामे संसारेवड्ढणे | उरगो सुवण्णपासे व संकमाणो तणुं चरे ।। ( उ० १४ : ४७) गीध पक्षी के दृष्टान्त से कामभोगों को संसार को बढ़ानेवाले जानकर विवेकी पुरुष, गरुड़ के समीप सर्प की तरह, कामभोगों से सशंकित रहता हुआ चले । ७. इह कामाणियट्टस्स, अत्तट्ठे अवरज्झई । सोच्चा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई ।। इह कामाणियट्टस्स, अत्तट्ठे जनावरज्झई ।। (उ० ७ : २५, २६ क, ख ) इस संसार में कामभोगों से निवृत्त न होने वाले पुरुष का आत्म-प्रयोजन नष्ट हो जाता है। मोक्ष-मार्ग को सुनकर भी वह उससे पुनः पुनः भ्रष्ट हो जाता है। इस मनुष्य-भव में कामभोगों से निवृत्त होने वाले पुरुष का आत्म-प्रयोजन नष्ट नहीं होता । कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धंमि आउए । कस्स हेडिं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे ? ।। ८. ४७ इस सीमित आयु में कामभोग कुश के अग्रभाग के समान हेतु को सामने रखकर आगे के योगक्षेम को नहीं समझते ? ६. जे गिद्धे काम-भोगेसु, एगे कूडाय गच्छई | न मे दिट्ठे परे लोए, चक्खु - दिट्ठा इमा रई ।। १०. हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जणइ परे लोए, अत्थि वा नत्थि वा पुणो ? ।। ( उ० ७ : २४) स्वल्प हैं। तुम किस (उ०५ : ५) जो कोई मनुष्य शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श- इन पाँच प्रकार के कामभोगों में आसक्त होता है, वह नाना पापकृत्य में प्रवृत्त होता है। जब उसे कोई धर्म की बात कहता है, तो वह कहता है: “मैंने परलोक नहीं देखा और इन कामभोगों का आनन्द तो आँखों से देखा जाता है। यह प्रत्यक्ष है । (उ०५ : ६) "ये वर्तमान काल के कामभोग हाथ में आए हुए हैं। भविष्य के कामभोग कब मिलेंगे - कौन जानता है और यह भी कौन जानता है कि परलोक है या नहीं?" १. जिस गीध के पास मांस होता है उस पर दूसरे पक्षी झपटते हैं, जिसके पास मांस नहीं होता उस पर नहीं झपटते ।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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