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________________ ३५६ महावीर वाणी ___पदार्थों की वर्तना में सहायक होना यह काल का लक्षण है। जीव का लक्षण उपयोग है। जीव ज्ञान, दर्शन, सुख और दुःख से व्यक्त होता है। ६. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य एवं जीवस्स लक्खणं।। (उ० २८ : ११) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग-ये सब जीव के लक्षण हैं। ७. सबंधयारउज्जोओ पहा छायातवे इ वा। वण्णरसगन्धफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ।। (उ० २८ : १२) शब्द, अंधकार, उद्योत-प्रकाश, प्रभा, छाया, धूप, वर्ण गंध, रस, स्पर्श-ये पुद्गल के लक्षण हैं। ८. एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य। संजोगा य विभागा य पज्जवाणं तु लक्खणं।। (उ० २८ : १३) एकत्व, पृथकत्व, संख्या, संस्थान, संजोग और विभाग–ये पर्यायों के लक्षण हैं। ६. अजीव १. रूविणो चेवऽरूवी य अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता रूविणो वि चउब्दिहा।। (उ० ३६ : ४) अजीव दो प्रकार के होते हैं-रूपी और अरूपी। अरूपी अजीव दस प्रकार के कहे गए हैं और रूपी अजीव चार प्रकार के। २. धम्मत्थिकाए तद्देसे तप्पएसे य आहिए। अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए।। आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए। अद्धासमए चेव अरूवी दसहा भवे।। (उ० ३६ : ५-६) धर्मास्तिकाय समूची, उसका देश और प्रदेश अधर्मास्तिकाय समूची, उसका देश और प्रदेश; आकाशास्तिकाय समूची, उसका देश और प्रदेश और अद्धा समय-काल ये सब मिलाकर अरूपी अजीव के दस भेद होते हैं। ३. खंधा य खंधदेसा य तप्पएसा तहेव य। परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चउविहा।। (उ० ३६ : १०) स्कंध-समूची पुद्गलास्तिकाय, उसका देश, उसका प्रदेश और परमाणु ये रूपी अजीव पदार्थ के चार भेद हैं।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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