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महावीर वाणी
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पर्यायों में होते हैं और पर्याय द्रव्यों में होती है। इसलिए यह निश्चय है कि उत्पाद आदि सब द्रव्यरूप ही हैं। ७. समवेदं खलु दवं संभवठिदिणाससण्णिदढेंहिं।
एकम्मि चेव समये तम्हा दवं खु तत्तिदयं ।। (प्र० सा० २ : १०)
द्रव्य एक ही समय में उत्पाद, ध्रौव्य और व्यय नामक भावों से एकमेक होता है। अतः वे तीनों द्रव्य-स्वरूप ही हैं। ८. उप्पत्ती व विणासो दव्वस्स य णत्थि अत्थि समावो। विगमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया।।
(पंचा० ११) द्रव्य का उत्पाद अथवा विनाश नहीं होता, वह तो सत्स्वरूप है। किन्तु उसी की पर्याय उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य को करती हैं। अर्थात् द्रव्य दृष्टि से द्रव्य उत्पाद, व्यय रूप नहीं हैं, किन्तु पर्याय की दृष्टि से हैं। ६. पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि।
दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूविंति।। (पंचा० १२)
पर्यायरहित द्रव्य नहीं है और द्रव्यरहित पर्याय नहीं है। अतः भाव को द्रव्य और पर्याय से अभिन्न कहते हैं। .१०. दवेण विणा ण गणा गणेहिं दवं विणा ण संभवदि।
अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाणं हवदि तम्हा।। (पंचा० १३)
द्रव्य के बिना गुण नहीं होते और गुणों के बिना द्रव्य नहीं होता। अतः भाव द्रव्य और गुण से अभिन्न होता है। ११. ण हवदि जदि सद्दव् असद्धवं होदि तं कहं दव्वं । हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दव् सयं सत्ता।।
(प्र० सा० २ : १३) यदि द्रव्य सत् नहीं है तो निश्चय ही असत् है। ऐसी स्थिति में वह द्रव्य कैसे हो सकता है और सत्ता से भिन्न हो सकता है ? इसलिए द्रव्य स्वयं ही सत्स्वरूप है। १२. दव् जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवजोगमओ।
पोग्गलदव्वप्पमुहं अयेदणं हवदि अज्जीवं ।। (प्र० सा० २ : ३५)
द्रव्य के दो भेद हैं-जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । उनमें से जीव द्रव्य चेतन और उपयोगमय है। पुद्गल आदि पाँच अचेतन द्रव्य अजीव है।