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उपदेश
१. मा पमायए
१. दुमपत्तए पण्डुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ।।
( उ० १० : १) जैसे रात्रि - समूह के बीतने पर वृक्ष का पक्का पीला पत्ता झड़ जाता है, उसी तरह मनुष्य - जीवन भी (आयु शेष होने पर समाप्त हो जाता है)। इसलिए हे गौतम! समय-भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
२. कुसग्गे जह ओसबिन्दुए थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ।।
( उ० १० : २ ) जैसे कुश की नोक पर लटका हुआ ओस बिन्दु थोड़ी ही देर टिकता है, वैसे ही मनुष्य जीवन भी । इसलिए हे गौतम! समय-भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
३. इइ इत्तरियम्मि आउए जीवियए बहुपच्चवायए ।
विहुणाहि रयं पुरे कडं समयं गोयम ! मा पमायए ।। ( उ० १० : ३)
आयु स्वल्प है और जीवन बहुत विघ्नों से भरा है । अतः तू पूर्वः संचित कर्म-रूपी रज को शीघ्र दूर कर । हे गौतम! समय-भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
४. दुलहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं ।
गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम ! मा पमायए ।। ( उ० १० : ४)
निश्चय ही मनुष्य-भव बहुत दुर्लभ है और सभी प्राणियों को बहुत दीर्घकाल के बाद मिलता है। कर्मों के फल बड़े गाढ़ होते हैं। इसलिए हे गौतम! समय-भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
५. एवं भवसंसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहिं । जीवो पमायबहुलो समयं गोयम ! मा पमायए ।।
( उ० १०:१५)
१. भगवान महावीर का अपने मुख्य शिष्य इन्द्रभूति गौतम को संबोधित यह उपदेश सभी साधकों के लिए अत्यन्त मननीय और उपादेय है ।
२. जैन दर्शन के अनुसार काल का सूक्ष्मतम विभाग 'समय' कहलाता है। काल की यह इकाई 'क्षण' से अति सूक्ष्म है।